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अध्यात्म और नियतिवादका सम्यग्दर्शन
पुरुषार्थहीनताका नशा आता है) नियतिवादर्भ जब अपने भावोंका भी कतत्व नहीं है अर्थात ये भाव सुनिश्चित है तब पुष्पा-पाप, हिसा-अहिंसा, सदाचार-दुराचार, सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन क्या ?
गोरसे यारा क्यों?-पदि प्रत्येक व्यका प्रतिसमयका परिणमन नियत है, भले ही वह हमें नमालम हो, तो किसी कार्यको पुण्य और किसी कार्यको पाप क्यों कहा जाय ? नाथूराम गोडमेने महात्माजीको गोली मारी तो क्यों नाथूरामको हत्यारा कहा जाय ? नारामका उस समय बसा ही परिणमन होना
या महात्माजीका भी वसाही होना था और गोलीका और पिस्तौलका भी वैसा ही परिणमन निश्चित था। • अथात हत्या नाथुराम, महात्माजी, पिस्तौल औपासकादि-अनावरायोकी विधिकिार्यक्रमकाजमिस्हिायाज है। इस घटनासे सम्बद्ध सभी पदार्थोंके परिणमन नियत थे। और उस मम्मिलित नियतिका परिणाम हत्या है। यदि यह कहा जाता है कि नाथराग महात्माजीक प्राणवियोगरूप परिणमनमें निमित्त हना है अत: अपराधी है तो महात्माजीको नायूरामके गोली चलाने में निमित्त होनेपर क्यों न अपराधी ठहराया जाय? जिस प्रकार महात्माजीका वह परिण मन निश्चिन था उसी प्रकार नाथूरामका भी। दोनों नियतिचक्र के सामने समानरूपसे दान थे । मो यदि नियतिदास नाथूराम हत्याका निमित्त होनेसे वोषी है तो महात्माजी भी नाथूरामकी गोली चलाने रूप पर्याय निमिन होनेसे दोषी क्यों नहीं ? इन्हें जाने दीगिए, हम तो यह कहते हैं कि--पिस्तौलसे गोली निकलनी थी और गोलीको गाँधीजीकी छातीमें घुसना या इसलिए नाथूराम और महात्माजीकी उपस्थिति हुई । नाथूराम तो गोली और पिस्तौलके उस अवश्यम्भावी परिणमनका एक निमित्त था जो नियतिचा के कारण वहाँ पहुँच गया। जिनकी नियतिका परिणाम हत्मा नामकी घटना है वे सब पदार्थ समानरूपरो नियतिनसे प्रेरित होकर उस घटनामें अपने अपने नियत भवितव्यके कारण उपस्थित है। अब उनमे क्यों भाव नाथ रामको पकड़ा जाता है ? बल्कि हम सबको उस दिन ऐसी खबर मूननी श्री और धी आत्माचरणको जज बनना या इसलिए यह सब गुआ। अत: हम सबको और आत्माचरणको ही पकड़ना चाहिए । अतः इस नियतिवादमें न कोई पुण्य है न पाप, न सदाचार न दुराचार । जब कर्तृत्व ही नहीं तब का सदाचार ऋया दुराचार नापूमाम गोडसेको नियनिवादके आधारपर ही अपना बनाव करना चाहिए था, और सीधा आत्माचरणके ऊपर टूटना चाहिए था कि- कि तुम्हें हमारे मुकदमेवा जज होता था इसलिए इतना बना निरतिचत्र चला और हम सब उसमें फंसे । यदि सब चेतनोको छुड़ाना है नो पिस्नील के भवितव्यको दोष देना चाहिएपिस्तौल का उस समय वैमा परिणमन होना होता, न वह गोडमेके हाथमें आती और ने गांधीजीकी छाती छिदती। सारा दोष पिस्नीलके नियन परिणमनका है। तात्पर्य यह कि इस नियतिवादमें सब साफ है। व्यभिचार, चोरी, दगाबाजी और हत्या आदि सबकुछ उन जन पदार्थों के नियत परिणमनके परिणाम है, इसमें व्यक्तिविशेषका क्या दोष? अतः इस सत्-असन लोपक, पुरुषार्थ-विधातक नियतिवादके विषसे रक्षा करनी चाहिए।
निर्यातबारमें एक ही प्रश्न एक हो उत्तर–नियतिवाद एक उत्तर है-ऐसा ही होना था, जो होना । होगा सो होगा ही' इसमें न कोई तर्क है, न कोई पुरुषार्थ और न कोई बुद्धि । वस्नुबवरधाम इस प्रकारके मन विचारोंका क्या उपयोग जगत्में रिजानसम्मत कार्यकारणभाव है। जैसी उपादान योग्यता और जो निमित्त होंगे तदनुसार चेतन-अर्थतनका परिणमन होता है। पुभवार्थं निमिन और अनुकूल मामग्रीके जुटाने में है। एक अग्नि है, पुरुषार्थी यदि उगम चन्दनना चग डाल देना तो सुगन्धिन प्रा निकलकर कमरको सुवासित कर देता है,यदि बारट आदि पड़ते है नो दुर्गन्धित धआं उगन्न हो जाता है। यह कहना अत्यन्त भ्रान्त है कि खुराको उसमें पड़ना था. पुरुषको उसमं डालना था. अग्निकाउने ग्रहण करना ही था। इसमें यदि कोई हेर-फेर करता है तो नियतिवादीका वही उत्तर कि ऐसा ही होना था।" भानो जगत्त्रो परिणमनीको एमा हीहोना था' इस निमति-पिशाचिनीने अपनी गोद ले रखा हो!
नियतिवावमें स्वपुरुषार्थ भी नहीं --निगनियादम अनन्स पुरुषार्थकी बात तो जाने दीजिये स्वपु:पार्य भी नहीं है । विचार तो कीजिये जब हमारा प्रत्येक क्षणका कार्यक्रम सुनिश्चित है और अनन्तकालका, उसमें हेरफेरका हमको भी अधिकार नहीं है तब हमारा पुरुषार्थ कहां? और कहां हमारा सम्यग्दर्शन ?