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प्रथम अध्याय
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उत्तर- मिध्यात्वपूर्वक उपशमसम्यग्दर्शनयुक्त प्राणीका मरण नहीं होता किन्तु वेदकपूर्वक उपशमसम्यग्दर्शनयुक्त प्राणीका तो मरण होता है। क्योंकि बेडक पूर्वक उपशम सभ्यदर्शनयुक्त जीव श्रेणीका आरोहण करता है और श्रेण्या रोहणके समय चारित्रमोहके उपशम के साथ मरण होनेपर अपर्यापक देवों के भी उपशस सम्यग्दर्शन होता है ।
विशेष - भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देव तथा देवियोंके क्षायिक नहीं होता । सोधर्म और ऐशान कल्पवासी देवियोंके भी क्षायिक नहीं होता। सौधर्म और ऐशान कल्पवासी पर्याप्त देवियोंके ही उपशन और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है।
saint अपेक्षा संज्ञी पचेन्द्रियके तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं। एकेन्द्रियसे चतुरिन्द्रियपर्यन्त कोई सम्यग्दर्शनात आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज् काय की अपेक्षा कायिकों के तीनों ही सम्यदर्शन होते हैं। स्थावर कायिक के एक भी नहीं ।
योगकी अपेक्षादीनां वाले जीवके तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं। अयोगियों के क्षायिक ही होता है ।
वेदकी अपेक्षा तीनों वेदोंमें तीनों ही सम्बदर्शन होते हैं। अवेद अवस्था में औपशमिक और क्षार्थिक होता है !
कषाय की अपेक्षा चारों कपायों में तीनों ही सम्बदर्शन होते हैं । अकपाय अवस्था में औपशमिक और क्षायिक होते हैं ।
ज्ञानकी अपेक्षा मति, भूत, अवधि और मन:पर्ययज्ञानियोंके तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं । केवली के क्षायिक ही होता है।
संयमी अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयम तीनों ही होते हैं। परिहारविशुद्धि संयम में वेदक और क्षायिक ही होता है ।
प्रश्न- परिहारविशुद्धि संयम में उपशमसम्यग्दर्शन क्यों नहीं होता ?
उत्तर - मन:पर्यय, परिहारविशुद्धि, औपशमिकसम्यक्त्व और आहारकऋद्धि इनमें से एकके होनेपर अन्य तीन नहीं होते । विशेष यह है कि मन:पर्ययके साथ मिध्यात्वपूर्वक avaraar निषेध है वेदपूर्वक का नहीं। कहा भी है
"मन:पर्यय, परिहारविशुद्धि, उपशमसम्यक्त्व और आहारक आहारकमिश्र इनमें से एकके होनेपर शेष नहीं होते ।"
सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात संयम में औपशमिक और क्षायिक होता है। संयतासंयत और असंयतों के तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं ।
दर्शनकी अपेक्षा चक्षुःदर्शन, अचक्षुः दर्शन और अवधिदर्शन में तीनों ही होते हैं । केवलदर्शन में क्षायिक ही होता है ।
लेश्या की अपेक्षा छहों लेश्याओं में तीनों ही होते हैं । अलेश्यावस्था में क्षायिक ही । भव्यत्वकी अपेक्षा गव्यों के तीनों ही होते हैं। अभव्योंक एक भी नहीं । सम्यक अपेक्षा से अपनी-अपनी अपेक्षा तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं । संज्ञाकी अपेक्षा संक्षियोंके तीनों ही होते हैं। असंज्ञियोंकि एक भी नहीं। संज्ञी और असंज्ञी दोनों अवस्थाओंसे जो रहित हैं उनके क्षायिक ही होता है ।
आहारकी अपेक्षा आहारकोंके भी तीनों ही होते हैं । छद्मस्थ अनाहारकों के भी तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं। समुद्धातप्राप्त केवळीके क्षायिक ही होता है ।
साधनके दो भेद हैं- अभ्यन्तर और बाह्य । सम्यग्दर्शनका अन्तरङ्ग सावन दर्शनमोह का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम है। वाह्यसाधन प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरक में