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मार्गदर्शक!- आचार्य श्री सुविहिासागर जी महाराज
प्रथम अध्याय लिए अपनी इच्छानुसार नाम रख लेना नाम निक्षेप है। जैसे किसी लड़केकी गजराज यह संझा।
लकड़ीमें खोदे गए, सूतसे काढ़े गए, गोबर आदिसे लीपे गए वस्तुके आकारमें 'यह वही है। इस प्रकारकी स्थापना तदाकारस्थापना है । शतरंजके अतदाकार मुहरों में हाथी घोड़ा आदिकी कल्पना अतदाकारस्थापना है।
जो गुणवाला था, है तथा रहेगा वह द्रव्य है। वर्तमान पर्यायवाला द्रव्य ही भाव कहलाता है।
जैसे-जीवनगुणकी अपेक्षाके बिना जिस किसी पदार्थको जीव कहना नामजीव है। उस आकारवाले या उस आकारसे रहित पदार्थमें उस जीवकी कल्पना स्थापनाजीव है। जैसे हाथी घोड़े के आकारवाले खिलौनों को या शतरंजके मुहरोंको हाथी घोड़ा कहना । जीवशास्त्र को जाननेवाला किन्तु वर्तमानमें उसमें उपयुक्त न रहनेवाला आत्मा बागमध्यजीव है। ज्ञाताका शरीर, कर्म, नोकर्म आदि नोभागमद्रव्यजीव हैं। सामान्य रूपसे नोआमद्रन्यजीव नहीं है क्योंकि कोई अजीव जीव नहीं बनता। पर्यायकी दृष्टिस नोआगमध्यजीपकी कल्पना हो सकती है। जैसे कोई मनुष्य मरकर देव होनेवाला है उसे आज भी भाविनोआगमद्रव्यदेव कह सकते हैं। अथवा जो आज जीवशास्त्रको नहीं जानता पर आगे जानेगा वह भो भाविनोबागमद्रव्यजीव कहा जा सकता है।
जीवशास्त्रको जानकर उसमें उपयुक्त आत्मा आगमभावजीव है। जीवन पर्यायसे युक्त श्रात्मा नोआगमभावजीव है।
इस तरह अनेक प्रकारके जीवों से अप्रस्तुत जीवोंको छोड़कर प्रकृत जीवको पहिचाननेके लिए निक्षेपकी आवश्यकता है । तात्पर्य यह कि हमें किस समय कौनसा जीव अपेक्षित है यह समझना निक्षेपका प्रयोजन है। जैसे जब बच्चा शेरके लिए रो रहा हो तब स्थापना शेरकी आवश्यकता है । शेरसिंह पुकारनेपर शेर सिंह नामबाले व्यक्तिकी आवश्यकता है। आदि ।
'नामस्थापनाद्रव्यभावतो न्यासः' इतना ही सूत्र बनानेसे प्रधानभूत सम्यग्दर्शनादिका ही प्रहण होता धतः प्रधानभूत सम्यग्दर्शनादि तथा उनके विषयभूत जीवादि सभीका संग्रह करने के लिए खासतौरसे सर्वसंग्राहक 'सत्' शब्द दे दिया है । नामादिनिक्षेपके विषयभूत जीवादि पदार्थों को जानने का उपाय बतलाते हैं
प्रमाणनयैरधिगमः ॥ ६ ॥ प्रमाण और नयके द्वारा जीवादिपदार्थोंका ज्ञान होता है। प्रमाण स्वार्थ और पराधके भेदसे दो प्रकारका है. । श्रुत स्वार्थ और परार्ध दोनों प्रकार का है। अन्य प्रमाण स्वार्थ ही है। ज्ञानात्मकको स्वार्ध तथा वचनात्मक को परार्थ कहते हैं। भय वचनविकल्परूप होते हैं।
सूत्रमें नय शब्दको अल्पस्वरवाला होनेसे प्रमाण शब्द के पहिले कहना चाहिए था लेकिन नयकी अपेक्षा प्रमाण पूज्य है अतः प्रमाण शब्द पहले कहा गया है। नयकी अपेक्षा प्रमाण पूज्य इसलिये है कि प्रमाणके द्वारा जाने गये पदार्थों के एक देशको ही नय जानता है । प्रमाण सम्पूर्ण पदार्थको जानता है। नय पदार्थ के एकदेश को जानता है। प्रमाण सकलादेशी होता है और नय विकलादेशी। नय दो प्रकारका है एक द्रव्याधिक