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________________ मंस्कृति का सम्यग्दर्शन अर्थात् सभी पुराना अच्छा और सभी नया बना नहीं हो सकता। समझदार परीक्षा करके उनसे ममीचीनको ग्रहण करते हैं। मह ही इसरोंके बहकावेम आता है। अत: इस प्राचीनताके मोह और नबीननामावनिको कार्यसमाधीसविताखामकली समाज चाहिए तभी हम जतन पीढ़ीकी मतिको समीचीन बना सकेंगे । इस प्राचीनताके मोहने अमंच्य अन्धविश्वासा. कुरूढ़ियों, निरर्थक परम्पराओं और अनर्थक लाम्नाय को जन्म देवर मानवक्री सहजद्धिको अनन्त भमोमें डाल दिया है। अत: इसका सम्यग्दर्शन प्राप्तकर जीवनको समीक्षापूर्ण बनाना चाहिए । संस्कृति का सम्यग्दर्शन मानवजातिका पतन-आत्म स्वरूपातर अजान ही मानवजानिके पनन्दकार मुख्य कारण । मनष्य एत्र. सामाजिक प्राणी है। यह अपने आसपासके मनुष्याक। प्रभावित करता है। बच्चा जब उत्पन्न होता है तो बहन कम संस्कारों को लंबर आता है। उत्पनिकी दात जाने दीजिये । यह आत्मा जब एव देहको छोड़कर दूसरा दारीर धारण करने के लिए किमी स्त्रीके गर्भमै गहुँचता है तो बहुत कम मंस्कारोंको लेकर जाना है। पूर्व जन्मको यावन यक्तियों उसी पर्यायके माथ समाप्त हो जाती हैं. कुछ शुक्ष्म संस्कार दी जन्मान्तर तक आते हैं । उस समय उसका आत्मा सूक्ष्म कार्मण शरीरके माथ रहता है । वह जिस स्त्रीक गर्भ में पहुँचता है यहाँ प्राप्न वीयंत्रण और रजःकणसे नए कलपिण्डम विवामित होने लगना है। जैसे गंस्कार उस रज:कण और वकणम होंग उनके अनुसार तथा याताके आहार-विहार-विचारोके अनुकल वह बदन लगता है। वह ना कोन मोमके रामान है जैमा सांचा मिल जायगा वैसा हुल जायगा। अत: उसका ०९ प्रतिगन विवाग मातापिताके संस्कारांके अनुसार होना है। यदि उनम कई गारीरिक या मानसिक वीमारी है तो यह बच्चम अवश्य आजायगी। जन्म देने के बाद वह मां बापके शब्दोंको सुनता है जनको त्रियाआको देखना है । आमपामके लोगोंके यवहारक सम्बार उसपर क्रमशः पड़ते जाते है। एक ब्राह्मण से उत्पन्न वारकको जन्मने ही यदि विगी म सलमान के यहां पालनको रच दिया जाय तो उसमें मलाम दृझा करना, मांग खाना, मी पात्रसे पानी पीना उसीगे टट्रो जाना आदि सभी बात मसालमानों देगी होन लगती है। यदि बह किम भेड़ियेकी मांदमं चला जाता है तो वह चौपायोंकी तरह वाने लगा है, कपड़ा पहनना भी उसे नी मुहाना, नारत्नग दरारोंको नानना है. दारीरके आकार के मित्राय मारी बात भंडिया जनी हो जाती है । चदि किगी चापडानका बालक ब्राह्मणवे. यहां पले नो उनमें वहन कुछ संस्कार ब्राह्मणांक आ जाते हैं। हां. नौ माह नई. चाण्डालीक गरीरसे.जो सरकार उभभ पड़ है, वे कभी भी उदबद्ध होकर उसके चाण्डालनवा परिचय करा देते हैं। तात्पर्य यह कि मानवजाति को नुतन पीढ़ी के लिए बहुत कुछ मां बार उनन्दायी है । उनकी वरी आदत और खोरे विचार नवीन पाहीम अपना घर बना लेज हैं। आज जगत्म माविला हे हैं कि-'गरऋतिकी रक्षा करो.गाकृति जी, संस्कृति डवीटो बचाओ।' इम सस्कृति नामपर उसके अजायबघ अनंक प्रबाकी बड्दगी भरी हुई है । कल्पित ऊत्त-नोच भात्र. अमकप्रकार के आचार-विचार, महनगहन. बोलनाबारना. उटना टना आदि सभी शामिल हैं। हम तरह जब चागं ओर से मतिरक्षाकी आवाज आ रही है और वह उनि भी है तो सत्रग परिले संस्कृतिकी ही परीआ दंगा जगई। नही गं कृतिबे नामपर मानवजानिक विनाशके माधनोवा पोषण तो नहीं किया जा रहा है । विन्दम अंग्रेज जानि ग्रह प्रचार करना ही कि गोरी जानिको ईश्वरन काली जातिपर शासन करनेकेन्लिाहीमतल पर भेजा और उनी कुरांस्कृतिका प्रचार काके में भारतीयोंपर शासन कान रहे । यह ना हम लोगोंन उनके ईश्वरको बाध्य किया कि यह अब उनग कह दे कि अब शासन करना छोड़ दो और उनन बाध्य शकर छोड़ दिया । जमनीने अपने नवयुवकाम इस संस्कृतिका प्रचार किया था चि-जर्मन आर्य रक्त है। वह सर्वोत्तम है। वह यह क्यिोंक विनाशके लिया है आर जगतम गामन
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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