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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ३० तत्त्वार्थेनसि प्रस्तावना का संसर्ग पाप कियाओंको प्रोत्साहन देना आदि अरति नोकषायके आत्र के कारण हैं। अपने और दूसरे में डाक उत्पन्न करना, शोकयुक्तका अभिनन्दन, वातारण में रुचि आदि नोकषायके आसयके कारण है। स्त्र और परको भय उत्पन्न करना, निर्दयता, दूसरोंको त्रास देना, आदि भयके आस्त्रवके कारण है। पृयक्रियाम जुगुप्सा करना, पर निन्दा आदि जुगुप्साकं आखदके कारण है । परस्त्रीगमन, स्वीके स्वरूपको धारण करना, असत्य वचन, परयेऽचना परशेष दर्शन, वृद्ध होकर भी युवकों जैसी प्रवृत्ति करना आदि स्त्रीवेद के सबके हेतु है। अन्यकोध मावाक्य अभाव गर्नका अभाव स्थियों में अल्प आयति, ईर्षाका न होता, राम are तुओं अनादर, स्वदार सन्तोष परस्त्रीत्याग आदि पुवेदके आववके कारण हैं। प्रचुरं कषाय, गुह्येन्द्रियांका विनाश परांगनाका अपमान, स्त्री या पुरुषोंमें अनंग क्रीड़ा, व्रतशीलयुक्त पुरुषोंको कष्ट उत्पन करना, तीव्रराग आदि नपुंसक वेदनीय नोकषायके आवके हेतु हैं । नरकाव-बहुत आरम्भ और बहुपरिग्रह नरकायुका आस्त्रव कराते हैं। मिथ्यादर्शन, तीव्रराग, मिथ्याभाषण, परद्रव्यहरण नलवी परोपकार करना यतिविरोध, शास्त्रविरोध, कृष्णलेया म अनिनाममपरिणाम, विषयोंमें अतिष्णा रौद्र ध्यान हिंसादि कर कार्यों में प्रवृत्ति, बाल वृद्ध स्त्री हत्या आदि कूरकर्म नरकायके आपके होते हैं। 1 निर्यवायु-छल कपट आदि मायाचार, मिथ्या अभिप्रायसे धर्मोपदेश देना, अधिक आरम्भ, अपिहिमा पानी लेक्ष्या और कपोत या मग सामस परिणाम मरणकालमें संध्यान, क्रूरकर्म भेद करना, अनयद्भावन, सोना चांदी आदिको खोटा करना, कृत्रिम चन्दनादि बनाना, जाति कुलशी दूषण लगाना, सद्गुणांवर कोप दोष दर्शन आदि पाथण भाव तिर्वचायुके आमलके कारण होते हैं। भी मनुष्यायु— अन्य आरम्भ अस्य परियर विनय भद्र स्वभाव, निष्कपटव्यवहार अत्यवधाय, मरणमंद न होना, मिथ्यात्वी व्यक्ति प्रभाव, सुखबोध्यता अहिंसकभाव, अत्यकोभ, क्षेषरहिनता रकमोंमें अरुचि अतिधिग्यागवत मधुर वथम जगत् में अल्प आसक्ति अनसूया, अल्पदेश, गुरु आदि की पूजा, कापोस और पीतलेरा राजस और अल्प सात्विक भाव, निराकुलता आदि भाव मनुष्यायुके आसवके कारण होते है। स्वाभाविक मृदुता और निरभिमान वृत्ति मनुध्यायुके सारण हेतु है। 1 r देवामरागमयम अर्थात् अभ्युदयकी कामना रहते हुए संयम धारण करना, धावकके प्रत मनपूर्वक कर्मका फल भोगनारूप अनामनिर्जरा, मन्यागी एकदण्डी त्रिदण्डी परमहंस आदि नायक पारगम्य आदि सात्विक परिणाम देशयुके असबके कारण होते हैं। नाम कर्म-मन वचन कायकी कुटिलता, विसंवादन अर्थात् श्रेगोमागमें अथक्षा उपन्न करके उससे करना मिथ्यादर्शन, पैशुन्य, अस्थिरचित्तता, झूठे बाट तराजू गज आदि रखना, मिथ्या साक्षी देना, परनिन्दा, आत्मप्रेममा, परव्य ग्रहण असत्यभाषण, अधिक परिग्रह वदा बिलासीवेश धारण करना, रूपमद, भाषण, असभ्य भाषण आफो जान बूझकर धारण करना, दशीकरण चूर्ण आदिका प्रयोग, मत्य आदिकं प्रयोग से दूसरोंमं कुतुहल उत्पन करना, देवगुरु पूजाके बहाने गन्ध माला धूम आदि लश्कर अपने की पुष्टि करना, पर विडम्बना, परोपहास, इंटोंके भट्टे लगाना, मन्दिर ध्वंस, उच्चान उजाड़ना, ती कोष मान-माया लोभ B प्रतिमा तोड़ना अशुभ शरीर आदिके उत्पादक अशुभ नाम कर्म का आन्न होता है। उनसे विपरीत मन-वचन-कायकी सरलता, ऋज प्रवृत्ति आदि सुन्दर शरीरोत्पादक शुभनाम कर्मका आसव होता है। सीकर नाम-निर्मल सम्पदर्शन, जगतिचिता जगत्‌के तारनेकी प्रकृष्ट भावना, विनयसम्प अन्य निरतिचार पालन निरन्तर ज्ञानोपयोग, गंगार दुःखभीता यथा शक्ति तप यथाशक्ति त्याग, + दावानल प्रज्वलित कराना, पापजीविका आदि कामसे
SR No.090502
Book TitleTattvarthvrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinmati Mata
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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