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अष्टमोऽध्यायः
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जिस नामकर्मविशेष को हेतु पाकर औदारिक आदि शरोरों के आकारो की निष्पत्ति होती है वह संस्थान नामक नामकर्म है। इस कर्म के उदय अनुसार हो शरीर की सुव्यवस्थित या अव्यवस्थित आकृतियाँ बन जाती है । एवं जिस कर्म के उदय से हाडों का विशेषरूपेण बंधना हो जाता है वह संहनन है। हाड, मांस, चमडे को धारनेवाले जीवों का शरीर तो हाडों पर ही थम रहा हैं हां एकेन्द्रिय जीव या देव, नारकियों, के शरीर में विलक्षण दृढता जो है वह हाडों के विना ही विलक्षण बंधन द्वारा हो जाती है । तथा जिन कर्मों के उदय से शरीर में आठ प्रकार का स्पर्श, पांच प्रकार का रस, दो संख्यावाला गंध,
और पांच संख्या को धारने वाला रूप बने वे स्पर्श, रस, आदि नामों को प्राप्त हये नामकर्म हैं। इनके कर्कषनाम, तिक्तनाम, सुरभिगंधनाम, कृष्णवर्णनाम इत्यादिक बीस अवान्तर भेद है। तथा जिस कर्म के उदय से विग्रहगति में आत्मा के गृहीतपूर्व शरीर की आकृति का विनाश नहीं होय वह आनुपूर्व्य नाम कर्म है जैसे कोई तिर्यञ्चजीव यदि नरक को जा रहा हैं उसके नरक आयु और नरक गति का उदय हो गया है, फिर भी नरकगत्यानपूर्व्यकम अनसार वह जीव विग्रहगति में पहिली तिर्यञ्च शरीर की आकृति को बनाये रक्खेगा। तथा जिस नामकर्म को निमित्त पाकर शरीर लोहपिण्ड के समान भारी नहीं होवे और अकौआ की रुई के समान लघु भी न हो वह अगुरुलघुसंज्ञक नामकर्म है। द्रव्यों में अगरु. लघु नाम का एक सामान्य गुण भी है जो कि द्रव्य को द्रव्यांतर या पर्याय को पर्यायांतर नहीं होने देकर स्वकीय स्वभावों में हो परिणमन कराता रहता है। दूसरा अगुरुलघु गुण सिद्धों में गोत्रकर्म के अभाव से व्यक्त होता है। यह तीसरा शरीर में विपाक करनेवाला अगुरुलघु नाम का पौद्गलिक नामकर्म है। जो कि शरीर को अतीव भारी और अतीव हलका नहीं होने देता है।
यदुदयात्स्वयंकृतोद्वंधनाद्युपघातस्तदुपघातनाम। यन्निमित्तः परशस्त्राघातनं तत्परघातनाम यदुदयानिवृत्तमातपनं तदातापनाम यन्निमित्तमुद्योतनं तदुद्योतनाम ।
जिस कर्म के उदय से स्वयं किये गये ऊपर नीचे बंधजाना, वायु के झंकोरों से लिभिड जाना, नख, सींग, दांत, आदि का अपने ही शरीर में घुस जाना आदि प्रक्रियाओं से निज का उपघात होय वह उपघात नामकर्म है । तथा जिस पौद्गलिक कर्म को निमित्त पाकर परकीय शस्त्रों आदि करके आघात हो जाय वह परघात नामकर्म है, अन्य को घात करने वाले तीक्ष्ण सींग, नख, डाढ आदिक अवयव जिस कर्म के उदय अनुसार बने वह परघात अच्छा जंचता है, तभी तो उपघात को पापप्रकृतियों में और परघात को