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दशमोऽध्यायः
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मोक्षका हेतु हो रहा यथाख्यातसंयम तो कथमपि नहीं हो सकता है । स्त्रियां ( पक्ष ) मोक्षके हेतु माने गये, संयमको साक्षात् नहीं धारती है । ( साध्य ) क्योंकि वे साधुओं के वन्दनायोग्य नहीं हैं । (हेतु) जैसे कि गृहस्थ विचारे साधुओंके वन्दनीय नहीं होने से मोक्ष हेतु संयमके धारी नहीं हैं । ( अन्वयदृष्टान्त ) । अन्य भी अनेक आगमवाक्य और युक्तियों से स्त्रियोंका तद्भवसे मोक्ष हो जाना सिद्ध नहीं हो पाता है । श्वेताम्बरों के यहां वदतोव्याघात दोष आ रहा है। एक ओर स्त्रियों को मोक्ष नहीं हो सकने के कार
का निरूपण है, दूसरी ओर स्त्रियोंको मोक्ष हो जानेका आदेश ( फतवा ) दे दिया है । प्रमेयकमल मार्तण्ड में स्त्रीमुक्तिका विशदरूपेण परिहार किया गया है। लिंगका दूसरा विचार निर्ग्रन्थलिंग और सग्रन्थलिंग स्वरूपसे भी किया जाता है । अव्यवहित रूपसे तो निर्ग्रन्थ यानी परिग्रहरहितपन लिंग करके ही मोक्ष होती है। हां, परम्परासें उससे अन्य सग्रन्थलिंगसे भी मोक्षोपाय प्रदर्शित किया गया है । श्वेताम्बर या पौराणिक सम्प्रदाय अनुसार यदि सग्रन्थलिंग करके सिद्धि मानी जायगी तो निर्ग्रन्थता व्यर्थ पडेगी । प्रायः सभी सम्प्रदायों में दीक्षा, वैराग्य, परिग्रह त्यागको ही उच्चकोटिका मोक्ष मार्ग स्वीकार किया गया है ।
सति तीर्थकरे सिद्धि रसत्यपि च कस्यचित,
भवेदव्यपदेशेन चारित्रेण विनिश्चयात् ॥ १० ॥
तथैवैकचतुःपञ्च विकल्पेन प्रकल्पते,
तीर्थकी अपेक्षा यों सिध्दिकी चिन्तना की जाय कि तीर्थंकर जिनेन्द्रकें विद्य मान होनेपर जीवोंकी सिध्दि होती है । और किसी किसी जीवकी तीर्थंकरोंके नहीं होनेपर उनके बारे में मोक्ष हो जावेगी । चारित्र करके सिध्दोंकी यों भावनाकी जाय कि वस्तुतः प्रत्युत्पन्न नयद्वारा विशेष निर्णय किया जाय उससे तो शद्वों द्वारा नहीं कथन करने योग्य चारित्र करके सिध्दि होती है । छठे गुणस्थानसे प्रारम्भ कर चौदहवें गुणस्थानतक यथायोग्य सामायिक, आदि चारित्र पाये जाते हैं। पांचवें गुणस्थान में देश चारित्र कहा जाता है । यों इन चारित्रोंका नामनिर्देश है । चौदहवे गुणस्थानके अन्तिम समयवर्त्ती चारित्रका नाम यथाख्यात चारित्र है । जो कि आत्माके चारित्र गुणकी परि ति है । द्रव्यों के गुण अनादिसे अनन्तकाल तक नित्य रहते हैं। हां, उनकी स्वभाव