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दशमोऽध्यायः
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अन्तोमुहुत्त मेत्तो तक्कालो होदि तत्थपरिणामा लोगाणमसंखमिदा उवरुवार सरिसवढिगया || वावत्तरिति सहस्सा सोलस चउचारि एक्क पंचेव, धण अद्धा विसेसे तिय संखाहोइ संखेज्जे ॥
इत्यादि कतिपय गाथाओं द्वारा तीनों कारणोंका उदाहरणसहित विस्तृत वर्णन है । समकालीन और भिन्न कालीन जीवोंके परिणाम सदृश और विसदृश भी हों इस कारण पहिला करण अधःकरण है । ऊर्ध्वगच्छ, तिर्यग्गच्छ, प्रचयधन, अनुकृष्टिरचना, इत्यादि विधि से विचार कर लिया जाय । पहिले करणका अन्तमुहूर्तकाल बडा है । उत्तरोत्तर छोटा है । दूसरे अपूर्व करणमें समान सामयिक नाना जीवों के परिणाम सदृश और विसदृश भी हैं हां, भिन्नकालीन जीवोंके परिणाम विसदृश ही हैं, - छणउदि च सहस्सा अट्ठय सोलस धणं तदद्वाणं, परिणामविसेसोविय चउसंखा पुव्वकरण संदिट्ठी ॥
इन दोनों करणोंके परिणाम असंख्यात लोक प्रमाण हैं । एक जीवके केवल अन्तर्मुहूर्त कालकी गणना में आनेवाले छोटे असंख्यात समयों प्रमाणही परिणाम होते हैं। हां, तीसरे करणके सम्पूर्ण परिणामके बल छोटे अन्तमुहूर्त के समयों बराबर स्वल्प असंख्याते ही हैं । समान समयोंके जीवोंके परिणाम समान ही हैं और भिन्नकालीन जीवोंके परिणाम विसदृश ही हैं-
एगम्हि कालसमये संठाणादीहिं जह णिवदन्ति ण णिवदन्ति तहा विय परिणामेहि मिहो जहि ॥
यों गोम्मटसारमें इन करणोंका व्यासरूपेण वर्णन है । विशेष परिच्छित्ति के अभिलाषुक विद्वान् वहांसे परितृप्ति करें यहां मात्र संकेत करनाही पर्याप्त समझा जाय । एकस्मिन् समये ह्यवलोकमानावच्छिन्ना जीवस्य परिणामाः सन्ति, तत्राप्रमत्तगुणस्थाने पूर्वपूर्वसमये प्रवृत्ता यादृशाः परिणामास्तादृशा एव, अथानन्तरमुत्तरसमयेष्वासतात्प्रवृत्ता विशिष्टचारित्ररूपाः परिणामा अथाप्रवृत्तकरणवाच्या भवंति अपूर्वकरणप्रयोगेणापूर्वक रणक्षपक गुणस्थानव्यपदेशमनुभूयाभिनवशुभाभिसंधिर्ना धर्म्यशुक्लध्यानाभिप्रायेण कृषीकृतपापप्रकृतिस्थित्यनुभागः सन् संबधितपुण्यकर्मानुभवः सन् अनिवृत्तिकरणं लब्ध्वा अनिवृत्तिवादरसांपरायक्षपकगुणस्थानमधिरोहति ।