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नवमोध्यायः
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परिणतियां सब व्यवहार धर्म हैं। किन्तु उपरिमगुणस्थान या गुणस्थानातीत निश्चयधर्मकी प्राप्तिके नितांत आवश्यक मार्ग ये ही हैं । अतः तब तक उपादेय हैं।
परमभावग्राहक शुद्ध द्रव्याथिक नयके द्वारा जो आत्माका स्वरूप ग्रहण किया जाता है वही निश्चय धर्म समझना चाहिये । जैन शासनका मन्थन करनेसे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि धर्म और धर्मीका अभेद संबंध है। यहां अन्य द्रव्योंके तदात्मक धर्मो या सांसारिक जीवोंके धर्मोका विचार नहीं कर केवल आत्मद्रव्य के अविष्वग्भावी धर्मोंका परामर्श किया जाता है। उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तपः, त्याग, आकिंचन्य और ब्रम्हचर्य ये दशलक्षण धर्म कहे गये हैं। साथही इनको परमब्रम्ह शुद्धसिद्ध परमात्मस्वरूप भी इष्ट किया जाता है । दशलक्षण पर्वमें पूजन करते समय " ॐ न्हीं परब्रह्मणे उत्तमक्षमाधर्माङ्गाय नमः " " ॐ हीं परब्रम्हणे उत्तममार्दवधर्मा
ङ्गाय नमः " इत्यादि से अनादिकालीन मंत्रोंको बोलकर पूजकजन अष्ट द्रव्योंको चढाते हैं और नियत दिनोंमें यथाक्रमसे उक्त अनादिकालीन दशों मंत्रोंका दश दिनतक जाप करते हैं । इन धर्मोंका व्याख्यान श्रवण, मनन, पालन, ध्यान भी उनकी लब्धिके लिये किया जाता है। उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों का व्याख्यान सुनना जितना मनोहारी है उनका पालन करना उससे कहीं असंख्यात गुण अधिक आनन्दप्रद है।
सम्यग्दष्टि जीवको स्वात्मानुभवसे जैसा निजानन्द रस झलकता है। उसी प्रकार धार्मिक पुरुषोंको उक्त सिद्ध परमात्मस्वरूप क्षमा आदि धर्मों के धारण, पालन द्वारा आत्मीय रसानुभवकी अलौकिक छटा प्रतिभासित रहती है। आत्माके निज गुण कभी नियुक्त नहीं हो पाते हैं। प्रत्युत सिद्ध अवस्थामें तो वे और भी परिस्फुट, निर्मल, निःप्रतिबन्ध होकर व्यक्त हो जाते है। निश्चय धर्म अविनाशी है, अन्तकाल तक आत्मामें तदात्मक होकर बना रहता है। प्रकरण में यह कहना है कि ये क्षमा आदि धर्म शुद्ध आत्माके परमोत्कृष्ट परिणाम है। अशुद्ध निश्चय नय, सद्भूत व्यवहार नय, अशुद्ध द्रव्याथिक नय, उपनय आदि नयोंके विषय हो रहे और संसारी जीवोंके कर्तव्य माने गये मतिज्ञान, देवपूजन, गुरुसेवा अध्ययन, प्रतिक्रमण, आलोचना, संस्थानविचय, मदीय शरीर आदि हेय परिणतियोंके सदृश ये धर्म नहीं हैं किन्तु आत्माके तदात्मक निज स्वरूप हैं। यानी इन धर्मोको अलग कर दिया जाय तो धर्मी आत्मा कुछ भी नहीं रह जायगा। जैसे कि उष्णता या उसके अविनाभावी गुणोंके निकाल देनेपर अग्नितत्व असत् हो जाता है।