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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
श्वेताम्बर यों कहोगे कि चारों ओरसे जीर्ण हो चुके विशेष वस्त्रका ग्रहण कर लेनेसे यह बात ध्वनित हो जाती हैं कि दृढ वस्त्रोंका तो परित्याग करना ही नहीं चाहिये । ऐसा कहनेपर तो हम दिगम्बर संप्रदायवाले कहते हैं कि तब तो अचेलताके कथनके साथ विरोध आ जावेगा जो अचेलताको मान चुका है। वह सचेलताको पुष्ट नहीं कर सकता है विरोध है । धोना, सुखाना, पोंछना आदि संस्कारोंके नहीं होनेसे वस्त्रका जीर्ण हो जाना कहा गया है । किन्तु दृढ वस्त्रका त्याग कहनेके लिये नहीं कहा गया है । पुनः श्वेतांबर यों कहे कि सूत्रमें पात्रकी प्रतिष्ठापना भी कही गयी है। संयमके लिये पात्र (थापडा) का ग्रहणसिद्ध हो जाता है। आचार्य कहते हैं कि यदि तुम यों मानो सो ठीक नहीं है क्योंकि चेल परिग्रहका उपलक्षण है । अचेलताका लक्षण परिग्रहत्याग है । पात्र भी परिग्रह है। इस कारण उसका भी त्याग कर देना सिद्ध ही हो जाता है । तिस कारण वस्त्र और पात्राका ग्रहण करना तुम्हारे यहां विशेष कारणकी अपेक्षा कर कहा गया है । जो भी कोई उपकरण ग्रहण किया जाता है कारण को अपेक्षा कर ही उसके ग्रहणकी विधि है । पुनः गृहीतका परित्याग करना भी अवश्य कहने योग्य ही है । तिस कारण अर्थक अधिकारकी अपेक्षा कर बहुतसे सूत्रोंमें वस्त्र और पात्रका ग्रहण जो कहा गया है वह कारणकी अपेक्षा कर ही निरूपित है। यों श्रेष्ठ मन्तव्य ग्रहण करना चाहिये । जो भावनामें यों कहा गया है कि अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामीने एक वर्षतक वस्त्र धारण किया था उसके पश्चात् वे वस्त्रका त्याग कर अचेलक जिन हो गये । उस कथन पर हम दिगंबरोंका यह कहना है कि उसमें बहुलतासे विवाद पडे हुये हैं। महावीर स्वामीके वस्त्रग्रहणका तुम्हारे यहां निर्णय नहीं हो सका है। क्योंकि उस विषयमें कोई यों कह रहे हैं कि जिस दिन वीर स्वामीने दीक्षा ली थी उसही दिन वीर जिनेन्द्रके उस वस्त्रको विलम्बन करनेवाले पुरुषने ले लिया था तुम्हारे यहां दूसरे विद्वान उसी विषयमें यों कह रहे हैं कि छ: महीने पश्चात् वह वस्त्र कांटों या शाखाओं करके छिन्न-भिन्न, हो गया था। कोई तुम्हारे आचार्य यों कह रहे हैं कि कुछ अधिक एक वर्ष व्यतीत होनेपर वह वस्त्र खंडलक नामक ब्राम्हणने ग्रहण कर लिया था, कोई यों भी बखान रहे हैं कि वायुके द्वारा गिरा दिये गये उस वस्त्रकी वीर नाथने उपेक्षा कर दी यानी त्याग दिया। विलम्बनको करनेवाले पूजकने फिर उस वस्त्रको वीरभगवान्के कन्धेपर रख दिया इत्यादि कोई कोई कहते