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नवमोध्यायः
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अण्डकोष या चिन्ह अधिक लम्बे हैं। यों या जो शीत आदि परीषहें सहने में समर्थ नहीं है । वह वस्त्र ग्रहण कर लेता है। इन पंक्तियों द्वारा मुक्त देशभाषाकार को श्री अपराजितसूरिका यह अभिप्राय प्रतीत हुआ कि वह वस्त्रधारी मात्र भिक्षुक है । यों श्वेतांबर मतानुसार भी वस्त्रग्रहण करना सभी साधुओंको आज्ञापित नहीं किया गया है । केवल जो लज्जाशील हैं, घृणायुक्त हैं, त्रिस्थानदोषसहित हैं। अथवा परीषहजयी नहीं है वही वस्त्रधारण कर सकते हैं। ऐसाही उन श्वेतांबरोंके ग्रंथोंमें उल्लेख है। सभी साधु
ओंको वस्त्रग्रहण करना अनिवार्य नहीं है । दिगंबर संप्रदाय अनुसार उक्त दोषवालों को दीक्षा ही नहीं दी जाती है । मुनि अवस्थामें कोई भी वस्धोंको धारण नहीं कर सकता वस्त्रसहित दशामें मुनि या साधु बना नहीं रह सकता है। छठे या सातवें गुणस्थानसे वह गिर जायगा उसके अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण कषायोंका उदय है। इसके आगे अपराजित सूरि कह रहे हैं कि तुम्हारे आचारांगमें तिस प्रकार कहा गया है कि दीर्घ जीवी भगवान्ने इस प्रकार मेरे लिये श्रुत कहा है कि इस संसारमें दो प्रकारके स्त्री और पुरुष संयमको धारनेवाले हुये होते हैं। वे यों समझो कि जिनके संपूर्ण अवयव परिपूर्ण हैं । और दूसरे जिनके सम्पूर्ण अंग परिपूर्ण नहीं हैं । तिनमें जो निर्दोष संपूर्ण परिपुष्ट अंगवाले हैं, अंग हाथ, कुहनी, पांव जिनके स्थिर हैं । संपूर्ण इंद्रियां निर्दोष है । उनको एक भी वस्त्र नहीं पहनना चाहिये केवल एक प्रतिलेखन यानी पिच्छिकाके सिवाय सबका परित्याग कर देना चाहिये । तिसी प्रकार कल्पसंज्ञक ग्रन्थमें भी यों कहा गया है कि जिसका शरीर ही हेतुक है। यानी अपने शरीरके अवयवों अनुसार जिसको अनुक्षण लज्जा लगती है । अथवा जिसका शरीर घृणायुक्त है। या तीन स्थानोंमें दोषोंसे युक्त है । परीषहोंको जीत नहीं सकता है । वह साधु जनतामें श्वेत वस्त्रको धारण करे । कारणकी अपेक्षा कर वस्त्रको ग्रहण करना चाहिये यों इस सिद्धान्तको बढिया सिद्ध करनेवाला आचारांगमें दूसरा सूत्र भी विद्यमान है । अब फिर इस प्रकार समझ लो कि शीतरोगसे आक्रान्त होनेपर या असह्य जाडेकी हेमन्त ऋतु प्राप्त होनेपर साधु वस्त्र उपधिको प्राप्त करे इस प्रकार शीतकालके समयमें शीतबाधाको नहीं सहन करनेवाला वस्त्रका परिग्रहण करके उस शीत ऋतुके निकल जानेपर और ग्रीष्म ऋतुके आ जानेपर वस्त्रको दूर रख देना चाहिये। यानी कपडेका त्याग कर देना चाहिये । यो कारणकी अपेक्षाकर वस्त्रका ग्रहण बखाना गया है । यदि तुम