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नवमोध्यायः
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मपि विशुद्धतमं भवति । संगनिमित्तो हि क्रोधस्तदभावे चोत्तमा क्षमा व्यवतिष्ठते । सुरुपोहमाढ्य इत्यादिको दर्पस्त्यक्तो भवति अचेलेनेति । मार्दवमपि तत्र सन्निहितं । अजिह्मता चास्य स्फुटमात्मीयं भावमादर्शयतोऽचेलस्यार्जवता भवति । मायाया मूलस्य परिग्रहस्य त्यागात् । चेलादिपरिग्रह परित्यागपरो यस्मात् विरागभावमुपगतः । शब्दादि विषयेष्वासक्तो भव । ततो विमुक्तेश्च शीतोष्णदंशमशकादिपरिश्रमाः, सुरासुरोदीर्णाः, षोढाश्चोपसर्गाः निश्चेलतामभ्युपगच्छता । ततोपि घोरमनुष्ठितं भवति । एवमचेलत्वोपदेशेन दशविधधर्माख्यानं कृतं भवति संक्षेपेण ।
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इसका संक्षेप अर्थ इस प्रकार है कि " न चेलो विद्यते यस्य असौ अचेलकः, अचेलकस्य भावः कर्म वा आचेलक्यं " । चेलका अर्थ वस्त्र हैं । जिसके पास वस्त्र नहीं है वह अचेलक है । अचेलकके भाव या कर्तव्यको आचेलक्य कहते हैं । चेलका ग्रहण संपूर्ण परिग्रहोंका उपलक्षण है, तिस कारण संपूर्ण परिग्रहों का परित्याग कर देना आचेलक्य यह कहा जाता है । उत्तमक्षमा आदि दशधर्मो में एक त्याग नामका धर्म भी है । संपूर्ण परिग्रहों से विरक्त हो जाना त्याग धर्म है । अचेलता भी वही त्याग रूप है । तिस कारण वस्त्ररहित हो रहा मुनि त्याग नामक धर्ममे प्रवर्त रहा है । नौमे आकिञ्चन्य नामके धर्म में भी वह निर्वस्त्र मुनि परिग्रहरहित होकर अच्छा उद्यमी हो रहा है जगत् में परिग्रहके लिये ही कृषि आदि आरम्भोंमे प्रवृत्ति की जाती है किन्तु परिग्रहरहित मुनि सेवा, वाणिज्य आदि आरम्भ नहीं होनेपर किस कारण असंयम होगा ? अर्थात् वस्त्ररहित मुनि छठे संयम धर्मको भी पालता हैं । तिसी प्रकार दिगंबर मुनि सत्यधर्म में भी भले प्रकार अवस्थित रहता है । क्योंकि परिग्रहके कारण ही जीव दूसरोंसे झूठ बोलता है । अब क्षेत्र, वास्तु आदि बहिरंग परिग्रह मुनिके नहीं हैं, और रागादिक अंतरंग परिग्रह भी नहीं रहे हैं । तो झूठ बोलनेका निमित्त कारण ही नहीं रहा तब तो इस प्रकार परिग्रहरहित होकर बोल रहा मुनि सत्यही बोलता है । वस्त्र रहित मुनि लाघवगुण भी होता है । वस्त्रवालेको बोझ लादना पडता है किन्तु वस्त्र रहित मुनि बोझ से रीतें होकर वायुके समान लघु होकर स्वच्छंद गमन करते है । वस्त्र यानी परिग्रहके त्याग देनेसे मुनिके अदत्तविरति यानी अचौर्य महाव्रत भी परिपूर्ण होता है । क्योंकि परिग्रहकी अभिलाषा होते सन्तेही नहीं दान किये गये पदार्थको ग्रहण करनेमें जीव प्रवर्तता है, अन्य कारणोंसे चोरी नहीं की जाती है । लाघव या अचौर्यही