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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
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जानेपर मुनि लोग लज्जित हो जाने के कारणसे तिस प्रकार वस्त्र,पात्र आदिको ग्रहण कर लेते है, ऐसा भगवती आराधना ग्रंथमें व्याख्यान कहा गया है । ग्रंथकार कहते हैं कि महषियोंके कहे गये ऐसे कथन भी बढिया है। जिस कारणसे कि वे महर्षि सभी रोगी, दोषी, प्रमादी, जीवोंका उपकार करते हैं। अर्थात् कोई अतीव कष्ट वेदनाको भुगत रहा है । उस मुनिका आत्मध्यानमें मन नहीं लगता है, समाधिमरणके अवसरपर शारि-रिक व्याधियां सता रही हैं। उस समय जैके खाद्य पदार्थ दिखला दिया जाता है। इसी प्रकार कम्बल, कौशेय वस्त्र, पात्र आदि भी दिखला दिये जाय, बलात्कारसे समाधिमरण कराकर अधोगति प्राप्त कराना महर्षियोंको इष्ट नहीं है। यदि एक, दो बार संयमसे च्युत भी हो जाय किन्तु सम्यग्दर्शन निर्दोष बना रहे तो समन्तभद्र, माघनन्दी, आदि मुनियोंके समान पीछे संयममें निष्णात संयमी भी हो जायगा । ऐसा विचार कर किसी अवसरपर संयम के शैथिल्यका उपदेश दे दिया गया है। यहां मुझ भाषाकारका यह प्रज्ञापन है कि--दिगंबर संप्रदाय अनुसार मुनि जब एक कपास निर्मित डोरा भी नहीं रख सकता है तो भला ऊर्णामय कम्बल कैसे ग्रहण कर लेगा ? आश्चर्य है, और ऐसी दशामें वह उपकरण वकुश या उपकरण कुशील जातिका मुनि कैसे प्रतिष्ठित रह सकता है ? कम्बल तो मूलमें ही ऊनका बनाया हुआ अत्यधिक अशुद्ध है। श्वेतांबर या वैष्णव एवं यवन आम्नायवाले भले ही कम्बलको शुद्ध बतावें किन्तु कुंदकुंद मुनींद्रकी पवित्र दिगंबर सम्प्रदायसे ऊनी वस्त्र अत्यन्त अपवित्र है। ऊन, चर्म, हड्डी इनमें सदा त्रस जीवोंकी उत्पत्ति, मरण, होता रहता है । अतः ये ऊन, शंख, सीप, चमरीरुह आदि पदार्थ अपवित्र हैं । लोकशुद्धिसे शास्त्रीयशुद्धि न्यारी है । कोई मुनि कम्बल या पात्रको मोहवश ग्रहण कर लेगा तो वह मुनिपदसे भ्रष्ट हो जायगा । श्री विद्यानंद आचार्य दिगंबर संप्रद्रायमें महान् उद्भट विद्वान् हुये हैं । ये मुनियोंके वस्त्र पात्र रखनेको भी कभी नहीं पुष्ट कर सकते हैं। इस सूत्रके विवरणकी संस्कृत लेख पद्धति भी अशद्ध प्रतीत हो रही है, गाम्भीर्य भी नहीं है। पहले लेखोंसे इन पंक्तियोंका साहित्य सादृश्य भी नहीं मिलता है। संभव है। किसी दिगंबर सिद्धांतबाह्य पंडितने कल्पित भाष्यको इस ग्रंथमें प्रक्षिप्त कर दिया है। आम्नायविधिज्ञ दिगंबर विद्वान् इस रहस्यका परामर्श कर लेवें। श्री महावीर स्वामीके त्रिलोक, त्रिकाल अबाधित दिगम्बरत्व सिद्धांतकी सर्वांग प्रतिष्ठाका लक्ष्य रखना चाहिये । इन कारिकाओंमें अशुद्धियां भी