________________
२८६.)
तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
-
---
न्याय के सामर्थ्य अनुसार पूर्व के दो ध्यानों को संसार के हेतु होने की सिद्धि होजाती है, क्योंकि उन आर्त रौद्र, ध्यानों मे मोहनीय कर्म के उदय की प्रकर्षता का योग होरहा हैं, तोत्रमोही जोव के दो पहिले ध्यान सम्भवते हैं। ..
तत्रातय कि लक्षणमित्याह :
उन चार ध्यानों मे प्रथम कहे गये आर्तध्यान का लक्षण क्या है ? ऐसो विनोत छात्र की जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज इस अगिले सूत्र का सष्ट उच्चारण कर रहे हैं।
प्रात्तनमनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय
स्मृतिसमन्वाहारः ॥३०॥ जो बाधा ओं के कारण होरहें विष, काँटे, शत्रु, शस्त्र आपात, रोग आदिक मनोनुकूल नहीं ऐसे अमनोज्ञ पदार्थों का प्रकृष्ट संयोग हो जाने पर उनके बढिया वियोग होजाने के लिये स्मृतियों का धारारूपेण ठोक पोछे पीछे आत्मा मे आहरण यानो वार बार उपजाते रहना पहिला आर्तध्यान है । अर्थात् एकबार स्मृति होजाना केवल स्मरण ज्ञान है, आर्तध्यान नहीं, हाँ, अमनोज्ञ पदार्थ का वियोग करने के लिये यदि पुनः पुनः उस विषय मे एकाग्र होकर अनेक स्मृतियां उठापो जायंगो तो वह स्मृतियों का समभि हार आर्तध्यान बन बैडेगा। इस सूत्र में तीव्र राग, द्वेष, पूर्वक स्मृतियों का समन्वाहार तो आर्तध्यान का सामान्य लक्षण है, शेष उद्देश्य भाग तो आर्तध्यान के चार भेदों में से पहिले प्रकार का प्रबोधक है।
अप्रियममनोज्ञं बाधाकारणत्वात् । भृशमर्थान्तरचिन्तनादाहरणं समन्वाहारः। आधिक्येनाहरणादेकत्रावरोधः पुनः पुनः प्रबंध इत्यर्थः । स्मृतेः समन्वाहारः स्मृति. समन्वाहारः । तेनामनोज्ञस्योपनिपाते स कथं नाम मे न स्यादिति संकल्पश्चिन्ताप्रबंध आत्तमिति प्रकाशितं भवति । तत्र कि हेतुकमित्याह :
___ जो पदार्थ वर्तमान मे जीव को अप्रिय है, बाधाओं का कारण होने से वह अमनोज्ञ माना जाता है । न्यारे न्यारे अर्थों का अत्यर्थ चिन्तन करने से जो पुनः पुनः आहरण (अनुवृत्ति) होजाना है वह समन्वाहार है, इस का तात्पर्य अर्थ यह हुआ कि, स्मृतियों का अधिकपने करके आहरण करने से एक अर्थ मे सब ओर से रुद्ध करते हुये पुनः पुनः स्मृतियों की रचना करते रहना पहिला आत्तध्यान है। स्मृति का ज