________________
तत्त्वार्थश्लोकवातिय लंकारे
२७० )
हैं । नयको श्रुतज्ञान से न्यून शक्तिवाला नहीं समझ बैठना । हाँ, कर्मों के क्षा करने की शक्ति नयज्ञानों मे विशेष है ।
सहकारीकारण, उपादानकारण, प्रोरेककारण, उदासीन कारण, ज्ञापककारण, समर्थकारण, इन मे से किसीको न्यूनशक्तिवाला दूसरे को अधिक शक्तिवाला ठहराने का किसी को अधिकार नहीं हैं । कोई व्यक्ति यो समाज स्वार्थवश किसी अपेक्षासे यदि किसी विशेष प्रेरक कारण की अधिक प्रतिष्ठा करता है, तो उस अनल कालतक अगणित पदार्थों को उदासीनतया कर रहे कारण के सन्मुख उस क्षणिक अपेक्षा का कोई मूल्य नहीं है, वस्तु को शक्ति का विचार कीजिये। गुप्रासादों मे वेडे हुये राजनीतिज्ञों तथा सिपाही सैनिक या मजूरों की दशा निहारिये । जोत्र के समान पुद्गल, धर्म, अधर्म, द्रव्य, कालाणुयें, आकाश, सभी अनन्तानन्त शक्तिवाले है । उदासीन कारण की शक्तिका बोझ प्रेरक कारण की शक्ति के गौरवसे न्यून नहीं है । प्रकरण मे यह कहना है कि श्रुतज्ञान का अंश हो जाने के कारण नय ज्ञानों को छोटा मत समझो " नयचक्र या आलापपद्धति मे किये गये नयों के विवरण का जिन प्रविष्ट विद्वानों ने सूक्ष्म गवेषण किया है, बे नयज्ञान का परिचय पागये है । द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वभाव, अविभाग प्रतिच्छेदों अनुसार वास्तविक नयज्ञान हो रहे अत्यधिक उपयोगी है । नित्याशुद्धपर्यायार्थिक, उपचरितासद्द्भूतव्यवहार, कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक, स्वजातिविजात्युपत्र रिता सद्भूतव्यवहार परमभाव ग्राहकनयें, परद्रव्यादि ग्राहकनय, निर्विकल्पनय, इत्यादि का परामर्ष करने से नयों के महान् उदर का गम्भीर विद्वानों को आभास होजाता है, दुर्नयों को लीला भी अपरम्पार है । नयज्ञान अतीव विचार करनेवाला विचारक है ।
व्यवहारिक प्रत्यक्ष या देशावधि, परमावत्रि, सर्वावधि ऋजुमति, विपुलमति यहाँ तक कि केवल ज्ञान भी अविचारक है । मतिज्ञानों में गिनाये गये संज्ञा, ( प्रत्यभिज्ञान ) चिन्ता, ( व्याप्तिज्ञान, ) आभिनिबोध ( स्वार्थानुमान) परार्थानुमान या प्रतिभा, संभव, अर्थापत्ति आदि ज्ञान तथा श्रुतज्ञान ये ज्ञान विचार करनेवाले हैं । उपशम श्रेणी या क्षपकश्र ेणी में अवधिज्ञान या मन:पर्यय भले ही पाये जांय, किंतु उनका उपयोग नहीं है । वस्तुतः वहाँ विचारशाली ध्यान होकर नयज्ञानमंडल चमक रहा है, तभी तो संचित अनन्तानन्तकर्मों का विनाश स्वल्पकाल में करदिया जाता है, इस अपेक्षा प्रमाणों से नयों की शक्ति बहुत बढी चढी मानी गई है। जो मुनि जितना ही विचारक या
-