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rasमोध्यायः
यहां कोई आक्षेप उठाता है कि जगत् में जितने भी पुद्गल द्रव्य हैं सब मे रस विद्यमान हैं, अतः रसका परित्याग करनेवाला व्रती किसी भी रसवाले मठा, पानी आदि पदार्थ को नहीं खा पीं सकेगा, सभी के त्यागका प्रसंग आजावेगा । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना, क्योंकि रंगवान, रूपवान, ज्ञानवान, धनवान आदि स्थलोमे प्रकर्ष अर्थकी ज्ञप्ति हो जाती है, अतः अधिक रसवाले या तीव्र रसवाले द्रव्यके ही परित्याग करने की भली प्रतीति हो जायगी, जैसे कि कोई मनुष्य गन्धको सूंघनेकी प्रतिज्ञा कर चुका है, वह प्रकृष्ट गन्धवाले, कस्तूरी, इत्र, पुष्प, धूप, पुष्प, आदि तीव्र रागोत्पादक पदार्थों को ही प्रकर्षगंधका त्याग करता है । अल्प गन्धवाले पदार्थोंका त्यागी नहीं है । वैसे तो सभी पुंगलो में गंध विद्यमान है, नासिका इन्द्रियवाला उनसे कथमपि नहीं बच
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सकता है, उसी प्रकार यहां रस का अर्थ प्रकृष्ट रसवाला पदार्थ ग्रहण करना । कश्चिदाह – अनशनावमौदर्यरसपरित्यागानां वृत्तिपरिसंख्यानावरोधात् पृथगनिर्देशः । तद्विकल्पनिर्देश इति चेन्न, अनवस्थानात् । तं प्रत्याह, न वा कायचेष्टा विषयगणनार्थत्वादृत्तिपरिसंख्यानस्य । अनशनस्याभ्यवहर्तव्य निवृत्तिरूपत्वादवमौदर्यरसपरित्यागयोरभ्यवहर्तव्यैकदेशनिवृत्तिपरत्वात्ततो भेदप्रसिद्धेः ।
यहां कोई पंड़ित कह रहा है कि अनशन, अवमौदर्य और रसपरित्याग इन तीनों तपोंका वृत्तिपरिसंख्यान नामक तप में अन्तर्भाव हो जायगा, क्योंकि सब ये भिक्षा सम्बन्धी ही नियम हैं, अतः इनका पृथक् उपदेश नहीं करना चाहिये, ग्रन्थका बोझ बढता है, यदि इस आक्षेप का उत्तर पण्डित के प्रति कोई यों देना चाहे कि भले ही वे वृत्ति परिसंख्यान मे गर्भित हो जाय, किन्तु शिष्यबुद्धि वैशद्यार्थ उस वृत्तिपरिसंख्यान तप के विकल्पों का पृथक् निर्देश कर दिया गया है, जैसे कि " दुःखशोक तापाक्रन्दन 11 इत्यादि सूत्र में दुःख के प्रकारोंका न्यारा निरूपण किया जाता है, इस पर पण्डित कहता हैं कि यह तो नहीं कह सकते हो, क्योंकि वृत्तिपरिसंख्यान के प्रकारोंका यदि पृथक् निरूपण करने लगोगे तो अनवस्था हो जायगी, लाखों, करोडों अटपटी आखडियों के नाम गिनाने पर भी कहीं दूर जाकर नहीं ठहर सकोगे, अतः हमारा आक्षेप तदवस्थ हैं । अब उस पण्डित के प्रति आचार्य समाधान वचन कहते हैं कि यह दोष उठाना ठोक नहीं हैं, क्योंकि वृत्तिपरिसंख्यान तप तो काय की चेष्टा आदि विषयोंकी गिनती के लिए किया जाता है कि साधु भिक्षामे प्रवृत्ति कर रहा, इतने ही क्षेत्र तक अपने शरीर की चेष्टा करे, अथवा ऐसे ऐसे गिनती के विषयोंका प्रसंग प्राप्त होय तभी भिक्षा लेवे, किन्तु यह अनशन तप तो खाने पीने व्यवहारमे आने योग्य पदार्थोंकी निवृत्ति कर देना स्वरूप है और अवमौदर्य नाम का तप तो खाने पीने योग्य पदार्थों के एक देश रूप से
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