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तत्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
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Bauh JDERSON
" दिग्देशानर्थदण्ड " आदि सूत्रमे सामायिक शद्वका अर्थ अतीत कालमे कहा जा चुका है । अथवा समासका विषय हो जानेसे सामायिक शद्वको यों बना लिया जाय कि अपगतौ " धातुसे आप बनाया जाय, आ रहे हैं इस कारण प्रारियोंके घातके कारण जो अनर्थ है वे आय है । सं उपसर्गका अर्थ संगत है अथवा सं का अर्थ समीचीन भी है । संगत जो आय अथवा समोचीन जो आय सो समाय है, उन समायो में उत्पन्न हुआ तथा जिसका प्रयोजन रामाय हैं इस कारण वह सामायिक हैं। यों समासकर पुनः भव या प्रयोजन अर्थ में ठण् प्रत्यय कर समाय शद्वसे सामायिक शद्व साधु बना लिया गया हैं, अर्थात् सामायिक मे प्राणघातका अनर्थ सब दूर चले जाते हैं, अथवा प्राणिघातक अनर्थोंको दूर करने के सामायिक किया जाता है ।
यो आत्मीय अवस्थान स्वरूप हो रहा सामायिक समासका विषय कर वखान दिया गया है, और वह सामायिक तो हिंसा, झूठ, चोरी आदिक सम्पूर्ण पापसहित योगोंका अभेद रूपसे प्रत्याख्यान करनेमे तत्पर है ।
यहां कोई आशंका उठाता है कि यदि निवृत्तिमे तत्पर सामायिक है तब तो सामाजिक को गुप्ति हो जानेका प्रसंग आजावेगा । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो न कहना क्योंकि यहाँ सामायिकमे मानसिक प्रवृत्ति विद्यमान है और गुष्ठिमे तो मनोयोग की भी निवृत्ति है ।
पुन: किसीका आक्षेप है कि यदि सामायिक करते समय मानसिक प्रवृत्ति है तो सामायिक को समिति हो जानेकी आपत्ति आ जायगी, ऐसी दशामे सामायिक पुनरुक्त हुआ | आचार्य कहते हैं यह भी नहीं मान बैठना। क्योंकि उस सामायिक चारित्रमें जो प्रयत्न कर रहा है उस मुनिको समितियोंमे प्रवृत्ति करनेका उपदेश हैं । अतः सामायिक कारण है और समिति कार्य है, यों कार्यकारण के भेदसे समिति और सामायिक में अन्तर है ।
फिर भी किसी का कटाक्ष है कि समिति में प्रवृत्त हो रहे मुनिको दश प्रकार
धर्म पालने का भी उपदेश है, ऐसी दशामें सामायिक को धर्म बन जानेका प्रसंग बन बैठेगा अथवा संयम नामके धर्म में सामायिक गर्भित है, फिर यहां क्यों कहा जा रहा है ? आचार्य कहते हैं कि यह तो न कहना क्योंकि इस सूत्र में इति शब्दका कथन करना सम्पूर्ण कर्मों के क्षय हो जानेका कारणपना समझाने के लिये है, इति का अर्थपूर्णता यानी समाप्ति है, चारित्र द्वारा सम्पूर्ण कर्मो का क्षय परिपूर्ण हो जाता है, अतः धर्ममें गर्भित हो रहा भी सामायिक आदि चारित्र अन्त में कहा गया है। जो कि मोक्षकी प्राप्तिका साक्षात् कारण है, इति इसी बात को समभाने के लिए सूत्रपात है ।