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नवमोऽध्यायः
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सामायिक्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपरोययथाख्यातमिति चारित्रम् ॥१८॥
___सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, मूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात यों पांच प्रकार चारित्र है। अर्थात् सम्पूर्ण जीवोमे समता भाव रखकर संयम पालते हुए मुनिका, आर्त, रद्र, ध्यानकी अवस्थासे रहित होकर तात्त्विक चिंतन करना सामायिक है । प्रमाद या अज्ञान द्वारा अतीन्द्रिय कर्मोदय अनुसार किसी निर्दोष क्रियाका विलोप हो जानेपर उससे ग्रहण किये जा चुके अशुभ कर्मों का प्रतीकार करते हुए आत्माको वहाँ का वहीं निर्दोष मार्ग में प्रतिष्ठित कर देना छेदोपस्थापना है।
____जीवोंकी बाधाके परिहारके साथ आत्मविशुद्धिको बढा रहा संयम परिहार विशुद्धि है । परिहारविशद्धि संयमीको चातुर्मासभे एक ही स्थलपर रहने का नियम लाग नहीं होता है । चौमासे में बस स्थावर जीवोंको अधिक उत्पत्ति होने के कारण दयालु मुनि एक ही स्थानपर विराजते हैं । परिहारविशुद्धि संयमको धार रहें मुनिके शरीरसे किसी भी जीवको बाधा नहीं पहुंचती है, प्रत्युत जोवोंको आनन्द प्राप्त होता है। मुनिशरीरसे रोगी का मात्र छ जाय तो रोग दूर हो जाय, जीवोंके ऊपर होकर भी मुनि चले जाय तो जीवोंके यह अभिलाषा बनी रहती हैं कि और भी दो चार बार परिहारविशुद्धिवाले मुनि हमारे ऊपर होकर चले जाय तो बहन ही आनंद आवे।
अतीव सूक्ष्म हो रहे लोभका उदय होनेपर भो सातिशपविशुद्धिको कर रहा दश' में गृणस्थानवाले मुनिका संयम सूक्ष्म सांपराय है।
मोहनीय कर्मके उपशम यो क्षयसे उपजा ग्यारहवे आदि चार गुणस्थानोमें वर्त रहा संयम यथाख्यात चारित्र है । चारित्र शब्दको निरुक्ति पहिले कही जा चुकी है। तत्वज्ञानी जीवका संसारकी जननी हो रहीं अन्तरंग बहिरंग क्रियाओंका निरोध कर अन्तरात्मामें रमण करना चारित्र है।
सामायिकशद्वोतीतार्थः। सामायिकमिति वा समासविषयत्वात् अयंती यायाः तत्वघातहेतवाऽनः संगता आया: समायाः सम्यग्वा आयाः समायास्तेषु भवं सामायिक समायाः प्रयोजनमस्येति च सामायिकमिति समास (य) विषयत्वं सामायिकस्यावस्थानस्य । सच्च सर्वसावद्ययोगप्रत्याख्यानपरं । गुप्तिप्रसंग इति चेन्न इह मानसप्रवृत्तिभावात् । समिति प्रसंग इति चेन्न, तत्र यतस्य प्रवृत्युपदेशात् । धर्मप्रसंग इति चेन्न, अत्रेति वचनस्य कृत्स्नक पक्षयहेतुन्वज्ञापनार्थत्वात् ।