________________
नवमोऽध्यायः
(१४७
करना, अकडते, मटकते, घूमते, नाचते हुये चलना आदि दोषों से रहित गमन किया जाता है। उस ईर्यापथशुद्धि के होते सन्ते संयम उसी प्रकार प्रतिष्ठित हो जाता है जैसे कि बढिया नीति को पालते हुये प्रभु के विभूति या धन की प्रतिष्ठा बढ जाती है।
भिक्षाशुद्धिः परीक्षितोभयप्रचाराप्रमष्टपूर्वापरस्वांगदेश विधाना आचारसूत्रोक्तकालदेशप्रवत्तिप्रतिपत्तिकुशला लाभालाभमानापमानसमानमनोवृत्तिः लोकहितकुलपरिवर्जनपरा चंद्रगतिरिव हीनाधिकगृहा विशिष्टोपस्थाना, दीनानाथदानशालाविवाहयजनगेहादि. परिवर्जनोपलक्षित.दीनवृत्तिविगमा प्रासुकाहारगवेषणणिधाना आगमविधिना निरवद्याशनपरिप्राप्तप्राणयात्राफला, तत्प्रतिबद्धा हि चरणसंपतगुणसंपदिव साधुजनसेवानिबन्धना।
पांचमी भिक्षाशुद्धि यों बन सकती हैं कि भले प्रकार परीक्षा कर देख लिया गया है जाने, आने दोनों मार्गों का प्रचार जिसमें अथवा बढिया देखकर मुनि दोनों पाओं से प्रचार करें या दोनों नेत्रों से दोनो ओर देखते हुये संयमी चलें। और अपने अगों के धरने योग्य पहिले पिछले देशों को भले प्रकार शुद्ध कर लेने की विधि में दत्तावधान रहें तब भिक्षाशुद्धि होगी। आचारशास्त्र में कहे गये उचित काल और समुचित देश की प्रवृ. त्तियों का परिज्ञान करने में कुशल बने रहना भिक्षाशुद्धि है। भोजन का लाभ हो जाने पर या अलाभ हो जाने पर राग, द्वेष, नहीं करते हुये मनोवृत्ति को समान बनाये रखना और किसी प्रकार कोई सम्मान करे या अपमान करे दोनों अवस्थाओं में एकसी मानसिक प्रवृत्ति रखना भिक्षाशुद्धि है । लोक में निन्दित माने गये कुलों का परित्याग करने में तत्पर हो रहा मुनि भिक्षा की शुद्धि पाल सकेगा। चन्द्रमा की गति जिस प्रकार कभी हीन ग्रहों पर होती है और कभी अधिक ग्रहों पर प्रवर्तती है अथवा उसकी छाया घरों पर जैसे न्यून अधिक पडती है उसी प्रकार मुनिमहाराज भिक्षा के लिये कभी थोड़े घरों में जाते हैं कभी अधिक घरों तक भी पर्यटन करते हुये, किसी एक घर में भिक्षा पा लेते हैं । निर्धन, अप्रति. ष्ठित या सधन प्रतिष्ठित दोनों के घर समान वृत्ति से जाते हैं। गरीब, अमीर के घर पर विशेषता को नहीं मानकर उपस्थित होते हैं। दातार गृहस्थ के घर जाकर अधिक देर तक भी नहीं ठहर सकते हैं जिससे कि दीनता या याचकत्व प्रकट होय और अत्यल्प भी नहीं ठहरे जिससे कि दानी को पात्र के आने का पता भी न चले । अतः भिक्षाके लिये दानी के घर पर विशिष्ट काल तक ही मुनी का ठहरना अभीष्ट है। इसी प्रकार रसोईघर या आंगन प्रदेशोंमें ही मुनि ठहर सकते हैं । भण्डारगृह, शयनगृहमें मुनि का ठहर जाना अनुचित है। भिक्षा की शुद्धि रखनेवाले मुनि को दीन (नदीदा) और अनाथ के घर भिक्षा नहीं