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तत्त्वार्थश्लोक वातिकालंकारे
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आदि से भी उस मुनि के भय नहीं उपजता है । क्योंकि उस भय का कारण हो नहीं रहा है । संसार में भयू के कारण भूषण, वस्त्र, संपत्ति, कुटुम्ब, शरीर इनमें व्यामोह आदिक हैं, जिनका कि संयम साधु सर्वथा त्याग कर चुका है । सम्यग्दृष्टि जीव ही भयों से रहित है फिर सकलसंयमी की तो बात हो क्या है ।
विनयशुद्धिः अर्हदादिषु परमगुरुषु यथार्हपूजाप्रवरणाज्ञानादिषु च यथाविि भक्तियुक्ता गुरोः सर्वत्रानुकूलवृत्तिः प्रश्नस्वाध्यायवाचनाकथाविज्ञापनादिषु प्रतिपत्तिकुशला देशकालभावावबोधनिपुरणा सदाचार्य मतानुचारिणी, तन्मूलाः सर्वसंपदः । ईर्यापथशुद्धिः नानाविधजीवस्थानयोन्याश्रयावबोधजनितप्रयत्न परिहृतजन्तुपीडा ज्ञानादित्यस्वेंद्रियप्रकाशनिरीक्षितदेशगामिनो द्रुतविलंबित संभ्रान्तविस्मित लीला विकारदिगंतरावलोकनादिदोषविरहितगमना तस्यां सत्यां संयमः प्रतिष्ठितो भवति विभव इति सुनीतौ ।
संयमी की विनयशुद्धि तो इस प्रकार है कि अर्हत्परमेष्ठी, सिद्धपरमेष्ठी आदि परमोत्कृष्ट गुरुओं में यथायोग्य भावपूजा करने की तत्परता बनी रहना तथा ज्ञान आदि अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र, उपचार इनमें शास्त्रोक्त विधिअनुसार भक्तियुक्त रहना ओर गुरु के साथ सभी स्थानों पर अनुकूल प्रवृत्ति रखना विनयशुद्धि है, तथैव प्रश्न करना, स्वाध्याय करना, वाचना, कथाओं को समझाना, तीन लोक का स्वरूप समझना, नौ पदार्थों की प्रतीति करना इत्यादिक में श्रद्धापूर्वक कुशल बने रहना विनयशुद्धि है । देश काल और भावों का ज्ञान कराने में निपुण हो रही तथा श्रेष्ठ आचार्यों के मत के अनुकूल चलनेवाली विनयशुद्धि है । उस विनयशुद्धि को मूल कारण मान कर ही सम्पूर्ण ज्ञान आदि सम्पत्तियां उपज जाती हैं। चौथी ईर्यापथ शुद्धि का विवरण यों है कि चौदह, उनईस, सत्तावन, अट्ठानवे आदि अनेक प्रकार के जीवस्थानों तथा नौ, चौरासी लाख, आदि योनिस्थानों के परिज्ञानों से उत्पन्न हुये दयापूर्ण प्रयत्न करके जिसमें जन्तुपीडा का परिहार किया जा चुका है ऐसी ईर्यापथशुद्धि है । भूमिका निरीक्षणकर चलना ईर्ष्या है । ईर्याके माग में जीवों को बाधा न पहुंचे ऐसे अनेक ज्ञान या प्रयत्नों द्वारा ईर्यापथ शुद्धि की जाती हैं । जैन सिद्धान्त में ज्ञान का प्रकाश सर्व प्रकाशों में प्रधान माना गया है । अतः ज्ञान और सूय तथा स्वकीय इन्द्रियों के प्रकाश द्वारा बढ़िया देख लिये गये देश में गमन कर रहो ईर्यापथ - शुद्धि है । ईर्याथ शुद्धि अनुसार अतिशीघ्र चलना, अतिविलम्ब से चलना संभ्रान्त ( डमाडोल विचार से या प्रमत्त होकर) गमन, आश्चर्य चकित होते जाना, खेलते कूदते चलना, अंगविकार करते हुये चलना, चलते समय सम्मुख दिशा से अन्य दिशाओं का अवलोकन