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नवमोऽध्यायः
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बाधापरिहरण समीर्यासमितिरित्यर्थः ।
___ इस सूत्र में पूर्व सूत्र से सम्यक् पद को अनुवृत्ति हो रही है अनुवृत्ति किये जा रहे सम्यक् शब्द के ग्रहण के साथ ईर्या आदि प्रत्येक का पूर्व में संबन्ध कर देना चाहिये यहां सम्यक् पद अधिकार में प्राप्त है तब तो सम्यक ईर्या, सम्यक् भाषा, इत्यादि रूप से समितियों के पांच नाम हो जाते हैं. समिति शब्द का यौगिक अर्थ या रूढि अर्थ निराला है किन्तु यहाँ प्रकरण में सम् + इण + क्तिन इन प्रकृति प्रत्ययों के अर्थ को भी ले रहा अन्वर्थसंज्ञावाला समितिशब्द तो मात्र जन सिद्धान्त में अर्हन्ततन्त्रानुसार इन्ही ईर्या आदि पांचों को कह रहा परिभाषित हो रहा है । उन पांच समितियों में पहली ईर्यासमिति तो चर्या करने में जोवों की बाधा का परिहार रखता है। जोवस्थानों को जो जान चुकेगा वह ही जीवों की रक्षा कर सकता है जो मूढ पुरुष मात्र मनुष्य को ही जीव मानता हैं अन्य मूर्ख केवल मनुष्य, पशु, पक्षियों में ही जोव मानते हैं कोई कोई कीट पतङ्गों को भी जीव मानने लगे हैं, कतिपय वैज्ञानिक पण्डित वृक्ष, वेलों में भी चैतन्य को स्वीकार करने लगे हैं किन्तु उनके जीभ, नाक, आंख, कान, का मानना सिद्धान्त विरुद्ध है। अग्नि के निकट आ जाने पर कोई वृक्ष कंपने लग जाय या कोई वृक्ष किसी कीट, पतङ्ग, को पकड़ ले, एतावता वृक्ष के आंखें नहीं कही जा सकती हैं यह तो पदार्थों के निमित्त से उनका परिणमन है । छुई मुई यदि हाथ छुपा देने से सकुच जाती है इतने मात्र से उसके लज्जा का सद्भाव नहीं माना जा सकता है। अनेक जड पदार्थ भी दूसरे द्रव्यों के निमित्त से आश्चर्यजनक परिणतियों को धार लेते हैं क्या वे वि वारशाली जीव कहे जा सकते हैं ? कभी नहीं। प्रायः सम्पूर्ण वनस्पतियां अपने अपने नियत समयों में पुष्पों को, फलों को धारती हैं मात्र इतनी क्रिया से वे काल विधि को समझने वाली नहीं मान लेनी चाहिये न्यारी न्यारी ऋतुओ में पृथ्वी, जल, वायु आदि के भिन्न भिन्न परिणामों अनुसार उन वनस्पतिओं को नियत काल में हो फूलना, फलना पडता है।
"दव्वपरिचट्टरूवो जो सो कालो हवेइ ववहारो"
निकट भविष्य में मेघ आने वाला है आंधी आवेगी ऐसे परिज्ञान चीटियां, मक्खियां, आदि जीवों के हो जाते हैं, शूकर को चार छः घन्टे प्रथम ही आंधी का आना सूझ जाता है। कई पक्षियों को भूकम्प आने का पहिले से ही लक्ष्य हो जाता है इतने से ही इनको ज्योतिषाचार्य नहीं कह देना चाहिये । अनेक उत्पातों या शुभ कार्यों के पूर्व में नाना प्रकार अविनाभावी परिणमब होते रहते हैं कीट पतड्गों को उन सव का यथायोग्य ज्ञान