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अष्टमोध्यायः
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तिशय अप्रैमत्त और सातिशय अप्रमत्त यों दो भेद हैं । छठे गुणस्थानका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है और सातमे का काल भी इससे छोटा अन्तर्मुहूर्त है, जो छठे से सातवां और सातवें से छठा यों हजारों लाखों परावृत्तियां होती रहती हैं । यह सातवां गुणस्थान निरतिशय अप्रमत्त है तथा द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन या क्षायिकसम्यग्दर्शन धारण कर दो श्रेणियों पर चढने के लिये उद्युक्त हो रहा है वह सातवां अधःकरण गुणस्थान सातिशय अप्रमत है । यहाँ से ऊपर आठवें, नौमे, दशमे, ग्यारहवें, इन चार गुणस्थानों में उपशम श्रेणी और आठवें, नौमे, दशमे, बारहवें इन चार गुणस्थानों में क्षपक श्रेणी प्रारम्भ हो जाती है। जहां चारित्र मोहनीय की इकईस प्रकृतियों का उपशम करता हुआ चढता है वह उपशम श्रेणी हैं तथा चार अप्रत्याख्यानावरण, चार प्रत्याख्यानावरण, चार संज्वलन, नौ नोकषाय, इन इस प्रकृतियों का क्षय करता हुआ ऊपर चढता है, वह क्षपकश्रेणी है । क्षायिक सम्यग्दृष्टि ही क्षपक श्रेणी पर चढता है ।
अपूर्व कररणपरिणामः उपशमकः क्षपकश्चोपचारात् अनिवृत्तिपरिणामवशात् क्षपकश्चानिवृत्तिबादरसां परायः
स्थूलभावेनोपशमकः सूक्ष्मसत्परायः ।
सूक्ष्मभावेनोपशमात्
आठवाँ गुग्णस्थान अपूर्वकरण नामक परिणामों को धार रहा उपशमक भी है क्षक भी है । यद्यपि आठवें गुणस्थान में उपराम गो को चढ रहा जो किन्हो प्रकृतियों का उपशम या क्षक श्रेगो को चढ़ रहा जोव किन्हों प्रकृतियों का क्षय नहीं कर रहा है, हाँ उत्सुक हो रहा है । तथापि द्वितोयोपशमसम्यग्दृष्टि या क्षायिक सम्यग्दृष्टि जोव पूर्व में उपशम या क्षय कर चुका है अथवा आगे नौमे गुणस्थान में उपशम या क्षय करेगा अतः उपचार से मध्य में भी यह उपराम करने वाला उपशमक अथवा क्षय करने वाला क्षपक कहा जाता हैं । जो भूतकाल में मन्त्री रह चुका है या भविष्य में मन्त्री होने वाला है वह वर्तमान में भी व्यवहारमुद्रासे मन्त्री कह दिया जाता है। हाँ, अपूर्वकरण परिणामों द्वारा स्थितिखण्डन, अनुभागखण्डन, गुणश्रेणीनिर्जरा, गुणसंक्रमण, ये चार अतिशय हो जाते हैं । अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण ये परिणाम कतिपय स्थलों पर होते हैं । उपशम सम्यग्दर्शन के पहिले मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में ये तीन करण होते हैं, अनन्तानुबन्धी का विसंयोजन करने या क्षायिक सम्यक्त्वग्रहण के पूर्व में भी ये तीन करण 'होते हैं । सातवें, आठवें, नौमे गुणस्थानों में भी तीन करण होते हैं इनकी जातियां सर्वत्र न्यारी न्यारी हैं । अधःकरण में पहिले पिछले समयों में परिणाम समान भी हैं विसदृश
क्षपणाच्च