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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
से मिथ्यात्व भूमि पर गिर पडेगा।
सम्यमिथ्यात्वोदयात् सम्यमिथ्यादृष्टिः,सम्यक्त्वोपेतश्चारित्रमोहोवयापाविताविरतिरसंयतसम्यग्दृष्टिः द्विविषयविरविरतिपरिणतः संयतासंयतः।
दर्शनमोहनीय की जात्यन्तर सर्वघाती हो रही सम्यमिथ्यात्व नामक प्रकृति का उदय हो जाने से दही और गुड के मिले हुये खटमिट्ठे रस के समान तत्त्वार्थों के श्रद्धान, अश्रद्धान, रूप मिश्र परिणामों को धार रहा जीव सम्यङ्मिथ्यादृष्टि है और मिश्रित परिणाम हो जाना तीसरा गुरा स्थान है। चौथा गुणस्थानी असंयत सम्यग्दृष्टि है। औपशमिकसम्यग्दर्शन या क्षायोपशमिकसम्यग्दर्शन अथवा क्षायिकसम्यग्दर्शन से सहित हो रहा भी चारित्रमोहनीय माने गये अप्रत्याख्यानावरण के उदय से इन्द्रियसंयम और प्राणिसंयमस्वरूप विरति की नहीं प्राप्ति कर रहा जोव असंयत सम्यग्दृष्टि है। इसके स्वरूप भी संयम नहीं हैं किन्तु सम्यग्दर्शन अवश्य हैं, चौथे से लेकर ऊपर के सभी गुणस्थानों में सम्यग्दर्शन नियम से विद्यमान रहता है। पहिले चार गुणस्थान तो दर्शनमोहनीय कर्म की अपेक्षा से हैं। दर्शनमोहनीय के उदय, उपशम, क्षय, या क्षयोपशम अनुसार हो जाते हैं। दूसरे में पारिणामिक भाव इसी अपेक्षा संभव रहा है। हां, चौथे से ऊपर पांचवें आदिक गुणस्थान तो चारित्रमोहनीय कर्म के क्षयोपशम या उपशम अथवा क्षय से हो जाते हैं। प्राणी और इन्द्रिय इन दोनों विषयों में कथंचित् विरति और कथंचित् अविरति परिणामों से समाहित हो रहा जीव संयतासंयत है। पांचवें गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरणकषायों का उदय सर्वथा नहीं है । हां, प्रत्याख्यानावरण का पाक्षिक अवस्था में या ग्यारह प्रतिमाओं में तारतम्य रूप से मन्द उदय है, संज्वलनव षाय और नोव.षायों का उदय है ही, प्राणियों में त्रस जीवों की संकल्पी हिंसा का परित्याग है और स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग नहीं है। इन्द्रिय. संयम भी एक देश पल रहा है बहुभाग नहीं पल रहा है । अतः एक ही समय में कुछ संयत और कुछ असंयत होने से पांचवें गुणस्थान वाला जीव संयतासंयत है।
परिप्राप्तसंयमः प्रमादवान् प्रमत्तसंयतः प्रमादविरहितोऽप्रमत्तसंयतः ।
चारित्र मोहनीय की बारह सर्वघाती प्रकृतियों का उदय निवृत्त हो जाने से जिस जीव को संयम प्राप्त हो गया है फिर भी चारित्र से कुछ स्खलित करनेवाले पन्द्रह प्रमादों से युक्त हो रहा वह जीव प्रमत्तसंयत कहा जाता है । संयम में नहीं विचलित हो रहा और प्रमादों से भी विरहित हो रहा जीव अप्रमत्तसंयत है। सातमे गुणस्थान के निर