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तत्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
पडता है। आठवें अध्याय के प्रकरणों को दो आन्हिकों में परिपूर्ण कर दिया है। यो इस आठवें अध्याय का संक्षिप्त व्याख्यान है ।
इति श्री विद्यानन्द आचार्यविरचिते तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
. अष्टमोऽध्यायः ॥८॥
इस प्रकार यहां तक अनेक अंतरंग, बहिरंग लक्ष्मियों के आश्रय हो रहे श्री विद्यानन्द आचार्य महाराज करके विशेषरूपेण विद्वत्तापूर्ण रचे गये इस तत्वार्थसूत्र की श्लोकों में वार्तिक और अलंकारस्वरूप विवरण करनेवाले तत्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार नामक महान् ग्रन्थ
में आठवां अध्याय सम्पूर्ण हुआ।
इति श्री तत्वार्थश्लोकवार्तिक ग्रन्थराज की आगरामण्डलान्तर्गत चावलोग्राम निवासि माणिक्यचन्द्रकृत देशभाषामय " तत्वार्थचिन्तामणि" नामक
टीका में आठवां अध्याय पूर्ण हुआ।
पुण्यानुबंधि पापानि पुण्यान्येनःपराणि च । समूलचूलं घ्नन् पुण्य पापानि स्ताच्छि, रयै जिनः ॥१॥
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