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अष्टमोऽध्यायः
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नहीं है । ग्यारहवे, बारहवे और तेरहवे गुणस्थानों में जो सातावेदनीय का बंध होता है उसे बंध ही नहीं समझा जाय अथवा उसमें भी पड गयी एक समय की स्थिति को स्थितिबंध माना जाय, द्वितीय क्षरण में उसकी निर्जरा हो जाती है । स्थिति पूरी हो जाने पर कर्म उदय को प्राप्त हो जाते हैं । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सामग्री नहीं मिलने से कतिपय कर्मों का प्रदेश उदय हो जाता है शेष का फलोदय यानी रसोदय हो जाता है । पुनः वे स्थितिशून्य कर्म स्वकीय कर्मत्वपर्याय का विनाश हो जाने से प्रदीप आदि के समान दूसरी पुद्गल पर्यायों को धार लेते हैं अर्थात् धोबी वस्त्र से मैल अलग कर देता है, यहां वही मल वस्त्र से हटकर दूसरी पर्याय को धार लेता हैं। किसी भी उपाय से मल पुद्गलद्रव्य का समूलचूल नाश नहीं हो सकता है, प्रदीपकलिका नष्ट होकर काजल अवस्था को धार लेती है प्रत्येक पदार्थ में उत्पाद, व्यय और धौव्य सुघटित हो रहे हैं जीवों के परिणामों को निमित्त पाकर कार्मणवर्गणारूप पुद्गल ही ज्ञानावरणादि स्वरूप कर्म हो कर के उपजते हैं कुछ काल तक वे कर्म होकर ठहरते हैं स्थिति पूरी हो जानेपर कर्मत्व परिणामों का विनाश हो जाता है । इस प्रकार ये कर्म भी उत्पाद और व्यय के समान स्थिति से भी प्रसिद्ध हो रहें हैं यह सिद्धान्त चित्त में धारण कर लिया जाता है ।
निर्णीता हि स्थितिः सर्वपदार्थानां क्षरणादूर्ध्वमपि प्रत्यभिज्ञानादबाधितस्वरूपा - द्भेदप्रत्ययादुत्पादविनाशवत् । ततः स्थितिमद्भिः कर्मभिरात्मनः स्थितिबन्धोऽनेकधा सूत्रितोनवद्यो बोद्धव्यः प्रकृतिबंधवत् ।
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बौद्ध पण्डित प्रत्येक पदार्थ को क्षणिक मानते हैं क्षरण के ऊपर दूसरे क्षण में उसका नाश हो जाना अभीष्ट करते हैं । इस बौद्धमन्तव्य का निराकरण कर हम पहले प्रकरणों में सम्पूर्ण पदार्थों की एक क्षण से ऊपर भी अनेक क्षणों तक स्थिति रहती हैं इसका निर्णय कर चुके हैं जब कि बाधाओं से रहित स्वरूप को धारनेवाले " स एव अयं " इस प्रत्यभिज्ञान प्रमाण से पदार्थों का ध्रौव्य सिद्ध हो रहा है । जैसे कि "यह अमुक से भिन्न है" पहिली अवस्था से यह अवस्था न्यारी उपजी है, इस भेदज्ञान से उत्पाद और विनाश सिद्ध हो रहे बौद्धों को मानने पडते हैं । उसी प्रकार एकत्वप्रत्यभिज्ञान से पदार्थों का कालान्तरस्थायित्व भी सिद्ध है तिसकारण से यह समझ लिया जाय कि स्थिति को धार रहे कर्मों के साथ आत्मा का जो अनेक प्रकारों से स्थितिबंध हो रहा उक्त सात सूत्रों में कहा गया है वह निर्दोष है । जैसे कि ज्ञानावरणादि प्रकृतियों के बंध का सूत्रकार ने दोषरहित निरूपण किया है उसी प्रकार स्थितिबंध भी प्रमाण सिद्ध हुआ निर्दोष है ।