________________
७६)
भाग न्यून होकर पडेगी । हाँ, संज्ञीलब्ध्यपर्याप्तक के तो अन्तः कोटाकोटी सागरोपम उत्कृष्ट - स्थिति पड़ेगी इस प्रकार परमागम का निर्णीत अर्थ है । गोम्मटसार - कर्मकांड में " एयं पण कदि पण्णं सयं सहस्सं च, मिच्छ वा बंधो, इगिविगलाणं अवरं पल्ला संखूण संखूणं ।" इत्यादि गाथाओं अनुसार भी उक्त अर्थ का ही प्रतिपादन होता है ।
अथ नामगोत्रयोः का परा स्थितिरित्याह ।
मोहनीय के अनन्तर अब नाम और गोत्रकर्म की
ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज इस अगले सूत्र को कह रहे हैं ।
विंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ १६॥
नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तो बीस कोटाकोटी सागर प्रमाण है । किसी भी जीव के एक बार में बंध गये नाम या गोत्रकर्म अधिक से अधिक बीस कोटा कोटी सागर तक ठहर सकेंगे ।
तत्वार्थश्लोकवार्तिकालंकारे
उत्कृष्ट स्थिति क्या है ?
सागरोपमकोटीकोटयः परा स्थितिरित्यनुवर्तते । इयमपि परा संज्ञिनः, पर्याप्तकस्यैकेन्द्रियस्य एकसागरोपमस्य सप्तभागौ द्वौ द्वीन्द्रियस्य पंचविंशतेः सागरोपमारणां, त्रींद्रियस्य पंचाशतः, चतुरिन्द्रियस्य शतस्य, असंज्ञिनः पञ्चेन्द्रियस्य सहस्रस्य, संज्ञिनो पर्याप्तकस्यांतः सागरोपमकोटी कोट्यः, एकेन्द्रियादेः सैव स्थितिः पत्योपमासंख्येयभागोना ।
66
31
पूर्वसूत्र के समान इस सूत्र में भी सागरोपमकोटी कोटयः " और परास्थितिः इन पदों की अनुवृत्ति कर ली जाती है " सूत्रेष्वदृष्टं पदं सूत्रान्तरादनुवर्तनीयं " सूत्रों में नहीं देखे गये पद अन्य सूत्रों से अनुवृत्ति द्वारा लगा दिये जाते हैं । यह नाम, गोत्र कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति भी मनवाले पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवके ही बंधती है । एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव के तो नामगोत्रों की उत्कृष्टस्थिति एक सागरोपम के दो सातवें भाग है । द्विद्रिय पर्याप्त जीव के बंध रहे नाम गोत्र कर्मों की उत्कृष्टस्थिति पच्चीस सागरोपम के दो बटे सात भाग है, क्योंकि वीस और सत्तर में दो बटे सात का अन्तर है । जैसे कि तीस और सत्तर में तीन और सात का रूपक है । तीन इन्द्रियवाले पर्याप्त जीव के बंध रहे नाम, गोत्र कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति पचास सागरोपम के सात भागों में से दो भाग प्रमाण १४३ पडेगी । चौइन्द्रिय पर्याप्त जीव के नामगोत्र कर्मों की स्थिति सौ सागर के सात भागों में दो भाग प्रमाण २८ १४ बंधेगी । असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त जीव के नामगोत्रों की उत्कृष्ट स्थिति हजार सागर के दो बटे ( गुणित ) सात भाग प्रमाण पडेगी । हाँ, संज्ञी अपर्याप्त