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पंचम-अध्याय
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न्तानन्त रूप हैं । तथा सम्पूर्ण जीवों के तो इनसे भी अनन्त गुणे मध्यम अनन्तानन्त प्रदेश हैं, जीवों की राशि और असख्यात प्रदेशों का गुणा करने पर विवक्षित जीवों के पिण्ड के प्रदेशों की संख्या निकल आती है, हां किसी भी एक जीव के प्रदेश तो असंख्याते ही हैं।
एकजीववचनसामर्थ्यान्न नानाजीवानामसंख्येयप्रदेशत्वं तेषां अनंतप्रदेशत्वस्यानंतानंतप्रदेशत्वस्य च संभवात् ।
सत्रकार द्वारा एक जीव के वचन की सामथ्र्य से नाना जीवों का असंख्यात प्रदेशीपना नहीं सिद्ध होपाता है, क्योंकि उन नाना जीवों के अनन्तप्रदेशीपना और अनन्त रहा है।
कुतः पुनर्धर्मादीनां सप्रदेशत्वं सिद्ध यतोऽसख्येयप्रदेशता साध्यत इत्याशंकां निराचिकीर्षु राह।
पुनः किसी विनीत शिष्य की शंका है, कि फिर यह बतानो कि धर्मादिकों का प्रदेशों से सहितपना भला किस प्रमाण से सिद्ध होजाता है ? जिससे कि उनका असंख्येय प्रदेशों से सहितपना साधा जाता है, इस प्रकार की आशंका का निराकरण करने की इच्छा रखते हुये ग्रन्थकार अगली वात्तिक को कहते हैं।
सप्रदेशा इमे सर्वमूर्तिमद्व्यसंगमात् ।
सकृदेवान्यथा तस्यायोगादेकाणुवत्ततः ॥ ५ ॥
ये धर्म, अधर्म, आदिक द्रव्य ( पक्ष ) प्रदेशों से सहित ही हैं, ( साध्य ) एक ही वार में सम्पूर्ण मूर्तिमान् द्रव्यों के साथ सम्बन्धी होजाने से ( हेतु) । अन्यथा-यानी इन धर्मादिकों को सप्रदेशी माने विना उन सम्पूरण मूर्तिमान् द्रव्यों के साथ उनके सम्बन्ध होजाने का प्रयोग होजावेगा जैसे कि एक परमारण प्रदेश सहित नहीं होने के कारण सम्पूर्ण मूर्तिमान् द्रव्यों के साथ युगपत् सम्बन्ध नहीं
(व्यतिरेक दृष्टान्त)। तिस कारण से ये धर्म प्रादिक अनेक प्रदेश वाले हैं, ( निगमन) यों यह उक्त सिद्धान्त पुष्ट होजाता है।
__ न हि सकृत्सर्वमूर्तिमद्रव्यसंगमः देसप्रशत्वमंतरेण घटते धर्मादीनामेकपरमाणुवत् । ततोमी धर्माधर्मेकजीवास्ते सप्रदेशा एव ।
प्रदेशों से सहितपन के विना धर्मादिकों का युगपत् सम्पूर्ण मूर्तिमान् द्रव्यों के साथ संयोग होजाना घटित नहीं होपाता है, जैसे कि प्रदेशों के विना निरंश एक परमाणु का एक ही समय में सम्पूर्ण मूर्तिमान् द्रव्यों के साथ सम्बन्ध नहीं होपाता है, तिसकारण से ये जो धर्म, अधर्म, और एक जीव द्रव्य हैं वे स्वात्मभूत प्रदेशों से सहित ही हैं।
____ मुख्यप्रदेशाभावादुपचरिताः प्रदेशास्तेषामिति चेत् कुतस्तत्र तदुपचारः १ सकृन्नानादेशद्रम्पसंबन्धादेव तस्य सप्रदेशे कांडपटादौ दर्शनादिति चेत् तद्वन्मुख्यप्रदेशसद्भावे को