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श्लोक-वातिक
वैशेषिकों ने उष्णता की अपेक्षा रखते हुये अग्नि--संयोग को पाकज रूप आदिकों का कारण बताया है, उसमें हमारा यह कहना है जब कि अनुष्णाशीत स्पर्श वाला और काले रूप वाला पूर्ववर्ती कच्चा घड़ा तुम वैशेषिकों ने प्रेरक भी नहीं माना है और उपघातक भी नहीं माना है, ऐसो दशा में वह घड़ा पूर्व--वर्ती रूप आदिकों के उच्छेद का कारण और उत्तर-वर्ती पाकज रूप आदिकों के उत्पाद का कारण कैसे प्राप्त होसकता है ? अर्थात्-घट यदि प्ररक होता तब तो नवीन रूप आदिकों का उत्पाद कर देता और यदि उपघातक होता तो पूर्ववर्ती रूप आदिकों का नाश कर देता किन्तु यह सब कार्य प्रापने वन्हिसंयोग के ऊपर रख छोड़ा है, ऐसी दशा में समवायिकारण होरहे घट की गाँठका कोई बल रूप आदिकों के उत्पाद या विनाश में कार्यकारी नहीं हो पाता है।
गुरुत्वं निष्क्रिय लोष्ठे वर्तमानं तृणादिषु । क्रियाहेतुर्यथा तद्वत्प्रयत्नादिस्तथेक्षणात् ॥ ३६॥ ये त्वाहुस्तेपि विध्वस्ताः प्रत्येतव्या दिशानया। स्वाश्रये विक्रियाहेतौ ततोन्यत्र हि विक्रिया ॥ ४० ॥ द्रव्य स्यैव क्रियाहेतुपरिणामात्पुनः पुनः।।
क्रियाकारित्वमन्यत्र प्रतीत्या नैव वाध्यते ॥४१॥
"आत्मसंयोगप्रयत्नाभ्यां हस्ते कर्म " इस सिद्धान्त को पुष्ट कर रहे वैशेषिक पुनः कहते हैं कि जिस प्रकार डेल में विद्यमान होरहा गुरुत्व नाम का गुण स्वयं क्रियारहित है किन्तु तृण, पत्ता, आदि में क्रिया को उपजाने का हेतु है उसी के समान प्रयत्न, संयोग, आदि निष्क्रिय भी हैं परन्तु आदि में क्रिया के उत्पादक हो जायंगे क्योंकि तिस प्रकार देखा जा रहा है, डेल के साथ बन्ध रहा हलका तिनका या पत्ता भी नीचे गिर जाता है। प्राचार्य कहते हैं कि इस प्रकार जो कोई वैशेषिक पण्डित कह रहे हैं वे भी तो इसी उक्त कथन के ढंग करके निराकृत कर लिये गये समझ लेने चाहिये । अर्थात्--केवल भारीपन किसी भी क्रिया का सम्पादक नहीं है, गिर रहा क्रियासहित डेल ही तिनका प्रादि में क्रिया को उपजाता है, विक्रिया के हेतु होरहे स्वकीय आश्रय में विक्रिया होते हुये ही उस विक्रियावान् द्रव्य से अन्य पदार्थों में विशेष क्रिया होसकती है, अन्यथा नहीं। बात यह है कि द्रव्य की ही बड़ी देर तक पुनः पुनः क्रिया के हेतुपन करके परिणति होती रहती है तभी वह द्रव्य अन्य हाथ, शरीर, तिनका, आदि पदार्थों में क्रिया को करा देता है, यह द्रव्य का क्रियाकारीपना प्रतीतियों करके वाधित नहीं होता है, अतः क्रियासहित प्रात्मा को ही शरीर आदि में क्रिया का हेतुपना है, यह निर्णीत समझो।