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पंचम-अध्याय कथंचित् अभेद दृष्टि अनुसार शुद्ध द्रव्य की ओर लक्ष्य रखते हुये यावत् गुण, क्रिया, अशुद्धद्रव्य, पर्याय इन सम्पूर्ण सत्पदार्थों में घटित होजोता है।
हां गुण और पर्याय वाला द्रव्य होता है, इस अशुद्ध दव्य के लक्षण का कर्म में प्रभाव होने पर भी कथंचित् एक द्रव्य के साथ अभिन्न लक्षणपना उस कर्म के सिद्ध होजावेगा अतः सर्वथा द्रव्य के लक्षणपना नहीं सिद्ध होसका। वैशेशिकों का द्वितीय पक्ष अनुसार सर्वथा भिन्न लक्षणपना हेतु स्वरूपासिद्ध है, और प्रथम पक्ष अनुसार कथंचित् भिन्नलक्षणपना हेतु तो कर्म में द्रव्य से कथंचित् पदार्थान्तर को साध सकेगा, इस कारण इष्ट होरहे साध्य से विरुद्ध साध्य को सिद्धि कर देने से वैशेषिकों का हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है। क्योंकि दूसरे विद्वान् वैशेषिकों ने उस कर्म में सभी प्रकारों से पदार्थान्तरपन यानी न्यारेपन को साध्य कर रखा है, अतः वैशेषिकों का भिन्न-लक्षणत्व हेतु अनैकान्तिक, प्रसिद्ध और विरुद्ध दोषों से युक्त है। ____ कर्म सर्वथा न द्रव्यात्पदार्थान्तरं कथंचित्तद्भिवलक्षणत्वाद्गुणादिवदिति परमतसिद्धेः न चात्र कर्माप्रतिपन्नं येनाश्रयासिद्धिः साधनस्य । नापि सर्वथा पदार्थांवरत्वेन द्रव्यात्प्रतिपन्न कुतश्वित्प्रमाणात् स्याद्वादिभिः, येन धमिग्राहकप्रमाण वाधा । तस्य कथंचित्पदार्थांतरत्वेनैव प्रतिपन्नत्वात् न चैवं सिद्धांतविरोधः, कर्मणः पर्यायत्वेन द्रव्यात्कथंचित्पदार्था तरत्वव्यवस्थितेरुत्पादविनाशत्वलक्षणस्य धौव्याव्यलक्षणादसिद्धेः । कर्मगुणसामान्यविशेषसमवायानां पर्यायलक्षणसद्भावात् पर्यायपदार्थत्ववचनादन्यथातिप्रसक्तः। प्रागभावादीनां विशेषणविशेष्यभावादीनां च पदार्थतरत्वप्रसंगात् पदाथशेषत्दकल्पनायामेकेनैव पदार्थेन पर्याप्तत्वादन्येषां पदार्थशेषावस्थिते सूनेवधारणाभावादित्युक्तप्रायं ।
वैशेषिकों के अनुमान का वाधक यह अनुमान है कि कर्म ( पक्ष ) द्रव्य से सर्वथा न्यारा भिन्न पदार्थ नहीं है ( साध्य ) उस द्रव्य के लक्षण से कथंचित् भिन्न, अभिन्न होरहे लक्षण को धारने वाला होने से ( हेतु) गुण, सामान्य, आदि के समान । इस अनुमान द्वारा पर-मत की यानी जैनमत की सिद्धि होजाती है। इस अनुमान में पक्ष हो रहा कर्म (क्रिया ) पदार्थ अपरिज्ञात नहीं है जिससे कि हेतु के आश्रयासिद्धि नामका दोष लग बैठता अर्थात् बाल गोपालों तक को क्रिया प्रसिद्ध होरही है अतः हसारा" कथंचित भिन्नलक्षणत्व" हेतु आश्रयासिद्ध हेत्वाभास नहीं है और स्याद्वादियों करके जिस किसी भी प्रमाण द्वारा वह कर्म से सर्वथा भिन्न तत्त्वपने करके भी ज्ञात नहीं है जिससे कि धर्मी को ग्रहण कराने वाले प्रमाण से वाधा आती। ...-हाँ द्रव्यसे कथंचित् भिन्न पदार्थपने करके ही उस कर्मकी प्रतिपत्ति होचुकी है भावार्थ -वैशेषिक यदि हमारे हेतु में यों वाधा उठाना चाहैं कि जिस प्रमाण करके धर्मी कर्म जाना जायगा वह प्रमाण द्रव्य से भिन्न होरहे ही कर्म को जान पायगा ऐसी दशा में द्रव्य से सर्वथा भिन्न पदार्थान्तरपन के प्रभाव को साधने वाला हेतु वाधित होजायगा, हम स्याद्वादी कहते हैं कि घोड़े कादोड़ना, पान