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श्लोक-वार्तिक
हैं तो असावेदनीय कर्म के आस्रव होते हैं ऐसा विश्वास कर लेना चाहिये । इस प्रकरण का विस्तार से निरूपण अन्य ग्रन्थों में वहाँ वहाँ कह दिया है ।
अथ दुःखादीनामसद्या स्रवत्वं किमागममात्रसिद्धमाहोस्विदनुमानसिद्धमपीत्याशंकायामस्यानुमानसिद्धत्वमादर्शयति ।
इस के अनन्तर अब यहाँ किसी की आशंका उठती है कि दुःख शोक आदिक ये असवेदनीय कर्मके आस्रव हैं, क्या यह मन्तव्य केवल जैनों के आगम प्रमाण से ही सिद्ध है ? अथवा क्या अनुमान प्रमाण से भी सिद्ध है ? बताओ। इस प्रकार आशंका होने पर ग्रन्थकार इस सूत्र के प्रमेय की अनुमान से सिद्धि होजाने को दिखलाते हैं ।
दुःखादीनि यथोक्तानि स्वपरोभयगानि तु । आसावयंति सर्वस्याप्यसातफल पुद्गलान् ॥१॥ तज्जातीयात्मसंक्लेशविशेषत्वाद्यथानले । प्रवेशादिविधायीनि स्वसंवेद्यानि कानिचित् ॥२॥
सर्वज्ञ आम्नाय अनुसार यथा उक्त चले आये सूत्र में कहे गये एवं स्वयं पर और उभय में प्राप्त होरहे दुःखशोक आदिक तो (पक्ष) असाता फल वाले पुद्गलों का आस्रव कराते हैं ( साध्य) उस-उस दुःख आदि जाति वाले आत्मसंक्लेश विशेष के होने से (हेतु) हम आदि के स्वसंवेदन प्रत्यक्ष द्वारा जाने गये कोई-कोई दुःख आदिक जिस प्रकार अग्नि में प्रवेश करना, भुरस जाना, जल मरना आदि क्रियाओं को करा देते हैं (अन्वयदृष्टान्त) यह बात सभी दार्शनिकों या लौकिक जनों के यहाँ प्रसिद्ध है यों अनुमान प्रमाण से साध दिया गया है।
दुःखमात्मस्थमसातफलपुद्गलास्रावि दुःखजातीयात्म संक्लेशविशेषत्वात् पावकप्रवेशकारिप्रसिद्धदुःखवत् । तथा परत्र दुःखमसात फलपुद्गलास्त्रावि तत एव तद्वत्, तथोभयस्थं दुःखं विवादापन्नमसातफलपुद्गलास्रावि तत एव तद्वत् । एवं शोकतापाक्रंदनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसातफलपुद्गलास्रावीण्युत्पादयितुर्जीवस्य दुःखजातीयात्मसंक्लेश विशेषत्वाद्विषभक्षणादिविधायिशोकतापाक्रंदनवधपरिदेवनवत् इत्यष्टादशानुमानानि प्रतिपत्तव्यानि ।
उक्त कारिकाओं की टीका इस प्रकार है कि अपने में स्थित होरहा दुःख (पक्ष) असात फल वाले पुद्गलों का आस्रव कर्ता है ( साध्यदल ) दुःख की जाति वाला विशेष आत्म संक्लेश होने से ( हेतु) अग्नि में प्रवेश कराने वाले प्रसिद्ध होरहे स्वकीय दुःख के समान (अन्वयदृष्टान्त) | भावार्थ - स्व तीव्र दुःख हो जाने पर जैसे कोई आत्मघाती पुरुष अग्नि में प्रवेश कर चारों ओर से अग्नि का आस्रव कर लेता है उसी प्रकार स्वयं को दुःख उपजा कर आत्मा संक्लेश विशेष होने के कारण असातावेदनीय कर्म का आव कर्त्ता है यह आत्मस्थ दुःख करके असातावेदनीय के आस्रव को साधने वाला पहिला अनुमान