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छठा-अध्याय
४५३ की नहीं अपेक्षा रखता हुआ परतंत्रपना हेतु भी रह जाता है और कषायहेतुकपना साध्य भी ठहर जाता है तिस कारण उक्त हेतु निर्दोष है जो संसारी जीव की परतंत्रता का कषायों द्वारा होना साध देता है हाँ जो अकषाय जीव हैं वे परतंत्र नहीं हैं।
तत्र सांपरायिकास्रवस्य के भेदा इत्याह ।
सूत्रकार के प्रति किसी शिष्य का प्रश्न है कि महाराज बताओ कि आदि में कहे गये साम्परायिक आस्रव के कौन कौन से भेद हैं ? इस प्रकार जिज्ञासा प्रवर्तने पर उन भेदों का परिज्ञान कराने के लिये श्री उमास्वामी महाराज इस अग्रिम सूत्र का स्पष्ट प्रतिपादन करते हैं । इन्द्रियकषायाव्रतक्रियाः पंचचतुःपंचपंचविंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः ॥५॥
अपने विषयों में व्यापार कर रहीं पाँच संख्या वाली स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षुः, श्रोत्र, ये इन्द्रियाँ और चार संख्यावाले क्रोध, मान, माया, लोभ ये आगे कहे जाने वाले कषाय तथा पाँच संख्या वाले हिंसा से अविरति, झठ से अविरति, चोरी से अविरति. अब्रह्म का अत्याग और परिग्रह का अप्रत्याख्यान स्वरूप ये अव्रत एवं सम्यक्त्व क्रिया आदि पञ्चीस संख्या वाली क्रियायें ये उन्तालीस पूर्वसाम्परायिक आस्रव के भेद हैं अर्थात् कषाय सहित जीवों के इनके द्वारा आस्रव होता है।
इन्द्रियाणि पंचसंख्यानि कषायाश्चतुःसंख्याः अव्रतानि पंचसंख्यानि क्रियाः पंचविंशतिसंख्या इति यथासंख्यमभिसंबंधः ।
"इन्द्रियकषायात्रतक्रियाः” इस इतरेतर योग समास वाले उद्देश्य दल का "पंचचतुःपंचपंचविंशतिसंख्याः" इस विधेय दल के साथ यथाक्रम से अन्वय करने पर यों अर्थ कर लिया जाता है कि पाँच संख्या वाली भाव इन्द्रियां हैं कषायों की संख्या चार है पाँच संख्या वाले अव्रत हैं क्रियाओं की गणना पच्चीस है। इस प्रकार उद्देश्य, विधेय, पदों की संख्या के अनुसार दोनों ओर से सम्बन्ध कर लेना चाहिये।
सांपरायिकमत्रोक्तं पूर्व तस्येंद्रियादयः ।
भेदाः पंचादिसंख्याः स्युः परिणामविशेषतः ॥१॥ यहाँ प्रकरण में सकषाया आदि सूत्र अनुसार पहिले साम्परायिक आस्रव कहा जा चुका है उसके पाँच आदि संख्यावाले इन्द्रिय आदिक चार भेद हो सकते हैं जो कि अन्तरंग बहिरंग कारणों अनुसार हुई आत्मा की विशेष परिणतियों से उन्तालीस प्रकार होजाते हैं।
न हि जीवस्येंद्रियादिपरिणामानां विशेषोऽसिद्धः परिणामित्वस्य वचनात् । कारणविशेषापेक्षत्वाच स्पर्शादिषु विषयेषु पुंसः स्पर्शनादीनि पंच भावेंद्रियाणि तदुपकृतौ वर्तमानानि द्रव्येद्रियाणि पंचेंद्रियसामान्योपादानादुक्तलक्षणानि प्रत्येतव्यानि ।