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छठा-अध्याय
और उनसे न्यारे अविशुद्ध होरहे काय आदि हेतुओं से किया गया है (साध्य) तत्त्वात् यानी शुभ अशुभ फल वाले पुद्गलों का आस्रव होने ( हेतु ) स्वयं अनुभूत कर देखे गये पथ्य, अपथ्य, भोजन आदि के समागम समान (अन्वयदृष्टान्त)। अर्थात्-जैसे आरोग्य या रोग के सम्पादक पथ्य, अपथ्य, पदार्थों का भोजन विचारा विशुद्ध, अविशुद्ध, कायादि करके ही हुआ सन्ता इष्ट अनिष्ट फलदायी पुद्गलों का समागम है उसी प्रकार आत्मा शुभ अशुभफल वाले पुद्गलों का समागम भी विशुद्ध और संक्लिष्ट काय, वचन, मन, करके किया है यह उक्त सूत्र के ऐदंपर्य में युक्ति कह दी गई है।
जीवस्य शुभफलपुद्गलानामास्रवो विशुद्धकायाध्यवसानाद्यंतरंगबहिरंगकृतः शुभफलपुद्गलास्रवत्वात्स्वयं दृष्टशुभफलपथ्याहारादिसमागमवत् । तथैवाशुभफलपुद्गलसमागमो जीवस्याविशुद्धकारणकृतः अशुभफलंपुद्गलसमागमत्वात् स्वयं दृष्टाशुभफलापथ्याहारादिवदित्यनुमानात्तनिश्चयः । न तावदत्रासिद्धो हेतुः शुभस्य विशुद्धिरूपस्याशुभस्य च संक्लेशात्मनः परिणामस्य स्वसंवेदनसिद्धस्य कारणानां पुद्गलानां समागमस्य शुभाशुभफलस्य प्रसिद्धेस्तद्भवभावित्वान्यथानुपपत्तेः।
जीव के शुभ फल वाले पुद्गलों का आसूव होरहा (पक्ष) विशुद्ध काय का अवलम्ब करना, वीर्यान्तराय क्षयोपशम, शरीर नामकर्म उदय, वाग्लब्धि, नो इन्द्रियावरणक्षयोपशम, शरीर, वर्गणायें, अविरति, कषाय, अध्यवसाय, द्रव्य, क्षेत्र, आदिक अन्तरंग कारणों करके किया गया है (साध्य) शुभ फलदायी पुद्गलों का आस्रव होने से (हेतु) स्वयं देखे जा चुके शुभ फलवाले पथ्य आहार, पुस्तक प्राप्ति, तीर्थ यात्रा, प्रतिष्ठा महोत्सव, सुपुत्र लब्धि, निरवद्य यशोलाभ, आदि इष्ट पदार्थों के समागम समान (अन्वयदृष्टान्त) प्रायः सम्पूर्ण इष्ट अर्थों की प्राप्ति का कारण विशुद्धि से अलंकृत होरहा पुण्य विशेष है। आहार, पान आदि का प्रयोग द्वारा जैसे आस्रव कर लिया जाता है उसी के कुछ सदृश योग्य पुत्र, पत्नी, यात्रावसर, वाणिज्य लाभ प्रकरण आदि का समागम भी उसी पुण्यशालिनी आत्म विश द्धि से साध्य हो रहे कार्य हैं। यहाँ कर्मों के आस्रव पर विशेष लक्ष्य है। इस अनुमान से शुभ आस्रव का कारण साध दिया जाता है । तिसी प्रकार आत्मा के निकट अशुभ फल वाले पुरुषों का समागम ( पक्ष ) जीव के अविशुद्ध यानी संक्लिष्ट कारणों करके बनाया गया है ( साध्यदल ) अशुभफलवाले पुद्गलों का समागम होने से ( हेतु) स्वयं देखे गये अशुभ फल वाले अपथ्य आहार, अपथ्यपान, वेश्या प्रसंग, कंटक, टोटा, कलह कारिणी स्त्री, आदि पदार्थों की प्राप्ति के समान ( अन्वय दृष्टान्त ) । इन उक्त दोनों अनुमानों से उस सूत्रोक्त अभिप्राय का निश्चय कर लिया जाता है। इन दो अनुमानों में प्रयुक्त किया गया हेतु असिद्धहेत्वाभास तो नहीं है यानी पक्ष में हेतु ठहर जाता है क्योंकि स्वसम्बोधन प्रत्यक्ष से प्रसिद्ध हो रहे विशद्धि स्वरूप शभ परिणाम और संक्लेशस्वरूप अशभ परिणाम के कारण हो रहे पुदगलों के शुभ अशुभ फल वाले समागम की मन्दमति पुरुषों को भी प्रसिद्धि हो रही है अन्यथा उक्त कार्यकारण भाव नहीं माना जायेगा तो उन विशुद्ध या संक्लिष्ट कारणों के होने पर उन शुभाशुभ पुद्गलों के समागम का होना बन नहीं सकता है। यों हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव बन रहा है अन्वय, . व्यतिरेक को घटित करते हुये कार्य कारणभाव भी इनमें संगत हो रहा है। यों पक्ष में प्रकृत हेतु वर्त रहा है।