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________________ श्लोक - वार्तिक गुणों में प्रवर्तती ही हैं अतः गुणों और पर्यायों से सहितपन की प्रतीति होजाने से गुणों को भी द्रव्य. पना प्राप्त हुआ यों व्यभिचार या प्रतिव्याप्ति दोष आता दीखता है इस प्रकार आशंका प्रवर्तने पर सूत्रकार महाराज इस अगले सुत्र को कहते हैं द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥ ४१ ॥ जिनका आश्रय द्रव्य है और जो स्वयं गुरणों से रहित हैं वे गुरण हैं । अर्थात् सभी गुण अविष्वग्भाव सम्बन्ध से द्रव्य में ठहरते हैं पुनः उन गुणों में दूसरे गुरण निवास नहीं करते हैं. अतः गुणों के गुरण सहितपन का लक्ष्य कर उठायी गयी व्यभिचार दोष की शंका का समाधान होजाता है । श्रशन्दोधिकरण साधनः कर्मसाधनो वा द्रव्यशब्द उक्तार्थः द्रव्यमाश्रयो येषां ते द्रव्याश्रयाः, निष्क्रांता गुणेभ्यो निर्गुणाः । एवंविधा गुणाः प्रति त्तव्याः न पुनः यथा लिया जाय "यत्र द्रव्य है श्र ४१४ " यहां सूत्र में पड़े हुये श्राश्रय शब्द को अधिकरण में ण्य प्रत्यय कर साध गुणा श्राश्रयत्ते स श्राश्रयः" जिस अधिकरण में गुरण प्राश्रय ले रहे हैं वह प्राश्रय है जिनका वे द्रव्याश्रय माने गये गुण हैं अथवा कर्म में ण्य प्रत्यय कर पुल्लिंग आश्रय शब्द का साधन कर लिया जाय । " यो गुणै राश्रियते स श्राश्रयः ' । यहाँ अन्तर इतना ही पड़ जाता है कि गुरणा यत्र श्राश्रयन्ते यों निरुक्ति करने पर गुरणों की स्वतंत्रता झलकती है और "गुणैराश्रियते" यों निर्वचन करने से गुणों को परतंत्रता की ओर जाना पड़ता है । वात यह है कि माता और पुत्र के समान द्रव्य और गुणों का स्वतंत्रता, परतंत्रता, इन दोनों ढंगों से सम्बन्ध हो रहा है वह परतंत्रता भी बड़ी मीठी है जो कि स्व की रक्षा करती हुयी स्व को उचित सन्मार्ग पर ले जाने के लिने प्रयोजित करती रहती हैं। श्वसुर माता पिता, गुरु, जिनागम इनके अधीन रहने में बढिया ठोस आनन्द छिपा हुआ है। साथ ही वह रूखी स्वतंत्रता भी कानी कौड़ी की नहीं है जो कि अनर्गल प्रर्वति का कारण होवे । छोटा बच्चा स्वाधीन भी है और माता के पराधीन भी है इसी प्रकार स्नेह वत्सला माता भी स्वाधीनता से बच्चे का पालन पोषण या प्रेम-व्यवहार करती हयी उस बच्चे के पराधीन भी माता के दूध की वृद्धि भी बालक के पुण्य अनुसार हो रही है । यही दशा द्रव्य और गुणों की है जिस प्रकार शरीर में आत्मा ठहरती है या श्रात्मा को शरीर में ठहरना पड़ता है तिस प्रकार यहां वस्तु परिणति अनुसार हुयी कारकों की विपक्षा से स्वातंत्र्य या पारतंत्र्य विचार लिये जाते हैं । प्रकरण में द्रव्य और गुणों में श्राश्रय आश्रयिभाव का सूक्ष्मरीत्या गवेषरण कर लेना चाहिये । द्रव्य शब्द का अर्थ हम पहले कह चुके है अतः जिन गुणों का श्राश्रय द्रव्य है वे गुरण विचारे द्रव्याश्रय हैं तथा जो गुणों से निष्क्रान्त यानी विरहित हो रहे हैं वे निर्गुण हैं इस प्रकार के द्रव्याश्रय और निर्गुण होरहे गुण समझ लेने चाहिये किन्तु फिर अन्य प्रकारों से गुणों की परिभाषा करना निर्दोष नहीं पड़ेगा ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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