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श्लोक-वातिक
उसी प्रकार समयों के पिण्ड प्रावलि, दिन, वर्ष, कल्पकाल आदि हैं अन्तर इतना ही है, कि परमाणुओं को दैशिक प्रत्यासंत्ति अनुसार पिण्ड होकर बने हुये द्वथणुक, घट, पर्वत, आदि स्कंध, तो वास्तविक पुद्गल पर्याय स्वरूप हैं किन्तु समयों कि कालिक प्रत्यासत्ति अनुसार धारा वना कर कल्पित किये गये प्रावलि, वर्ष, पल्य, आदि व्यवहार काल तो वस्तुभूत किसी द्रव्य की उत्पाद व्यय ध्रौव्य शाली अनुजीवी पर्यायें नहीं हैं। हां व्यवहार नय द्वारा ज्ञेय पदार्थ अवश्य हैं। -
' 'दव्यपरि वहु रूपो जो सो कालो हवेइ ववहारो' ( द्रव्यसंग्रह ) इस सिद्धान्त अनुसार ऋतु परिवर्तन, सूर्यगति भूविकार नियति, आदि कारणों से हुये द्रव्य परिवर्तन को यदि व्यवहार काल माना जाय तव तो वे द्रव्यों की मुख्य पर्याय हैं । यों इस सिद्धान्त का विवेक कर लेना चाहिये जिस काल के समय अनन्त हैं वह काल अनन्त समयों वाला समझ लेना चाहिये मुख्य काल और व्यवहार काल दोनों को अनन्त समयों से सहित पने की उपपत्ति की जा सकती है।
पर्यायतो द्रव्यतो वा व्यवहारत: परमार्थतो वेतिशंकायामिदपुच्यते ।
यहां कोई विनीत शिष्य जिज्ञासा प्रकट करता है कि वह काल अनन्त समयों वाला क्या पर्याय से है ? अथवा क्या द्रव्य रूप से काल अनन्त समय वाला है ?। या व्यवहार की अपेक्षा काल के अनन्त समय वताये गये हैं ? अथवा क्या परमार्थ रूप से वह काल अनन्त समयवान् है ? वतारो इस प्रकार शंकायें उपस्थित होने पर ग्रन्थकार द्वारा यह अग्रिम वात्तिक यों कहा जाता है कि
सोनंतसमयः प्रोक्तो भावतो व्यवहारतः।
द्रव्यतो जगदाकाशप्रदेशपरिमाणकः ॥ १॥ भाव यानी पर्याय से वह काल सूत्रकाल करके अनन्तसमयवाला वहुत अच्छा कहा जा चुका है अतः व्यवहार से पुद्गल आदि अनन्त पदार्थों की न्यारी न्यारी जाति अनुसार हई वर्तनानों की प्रयोजक होरहीं अनन्त शक्तियों का धारण करने के एक कालाणु भो अनन्त समय वाला यानी अनन्त शक्ति वाला कह दिया जाता है, द्रव्यरूप य काल अनन्त नहीं है । किन्तु सात राजू लम्बी जगत् श्रेणी के घन प्रमाण लोकाकाशके वरावर संख्यापरिमाण को धार रहा है।
- अर्थात्-लोकाकाश के प्रदेशों वरावर काल द्रव्य असंख्यातासंख्यात हैं अन्य द्रव्यों के समान कालाणु भी प्रतिक्षण एक पर्याय के धारण अनुसार भूत, वर्तमान, भविष्य, कालों की अनन्त परिणनियों वाली है। यद्यपि वस्तुतः विचारा जाय तो समय भी व्यवहार काल है जो कि एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर मन्दरूप से गमन कर रही परमाणु की क्रिया द्वारा कल्पित किया गया है, तथापि समय का अर्थ काल की पर्यायें या वर्तपित्री शक्तियें कर अनन्त समयों वाला परमार्थ काल भी होजाता है। ....... भावः पर्यायस्तेनानंतसमयः कालोनंतपर्यायवर्तनाहेतुस्वात । एकैको हि कालापुरनंतपर्यायान् यतले प्रतिषणं शक्तिपेशन्मत्यया ।सतो नंत सक्तिः पापमयः व्यवहारतोs -