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पंचम-अध्याय
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को सिद्धि में क्या प्रमाण है ? अथवा काल कितने भावों को धारता है ? ऐसो जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार इस अग्रिम सूत्र को कहते हैं।
सोऽनंतसमयः ॥ ४० ॥ वह प्रसिद्ध व्यवहार काल अनन्त समयों को लिये हुये है । अर्थात्-अक्षय अनन्तानन्त प्रतीत काल और एक वर्तमान काल तथा अतीत से अनन्तानन्तगुणा भविष्यकाल इन में होने वाले अनन्त समयों को व्यवहारकाल धार रहा है अथवा एक एक कालाणु द्रव्य का पदाथों की भूत, वर्तमान, भविष्य काल के समयों सम्वन्धी वर्तनामों का हेतु होरहा वर्तनाहेतुत्व गुण अनन्त पर्यायों वाला है, अतः एक कालाणु द्रव्य भी अनन्त समयों वाला उपचार से कहा जा सकता है सब से छोटा व्यवहार काल का अश समय है इससे छोटे काल यानी पाव, आधे, पोन समय में कोई भी पूरा कार्य सम्पन्न नहीं होसकता है पुद्गल परमाणु चाहे एक प्रदेश से अपने निकटवर्ती दूसरे प्रदेश पर जाय अथवा चौदह राजू तक जाय इस पूरेकार्य में एक समय लेलेगी काल के ऐसे अनन्त समय है।
परमसूक्ष्मः कालविशेषः समय, अनन्ताः समया यस्य सोनंतसमयः कालोनवो दुव्यः ।
भावार्थ- जैसे परिमाण गुण की आकाश से लगा कर लोक, स्वयंप्रभाचल, सुमेरु, जम्वूवृक्ष, हाथी, घोड़ा, घड़ा, कटोरा, बेर, पोस्त, षडणुक, व्यणुक, द्वयणुक, में तरतम भाव से पायी जारही सूक्ष्मता विचारी अन्त में जाकर परमाणु पर अन्तिम प्रकर्ष को प्राप्त होजाती है, उसी प्रकार व्यवहार काल की सूक्ष्मता भी तरतम अनुसार अभव्यों का अनाद्यनन्त काल, सिद्ध परमात्मा होचुके भगवान श्री ऋषभदेव का साद्यनन्त काल लोक प्रदेश परिमितकाल, सूच्यंगुल, कल्प, पल्य, कोटिपूर्व, वर्ष मांस दिन, घड़ी, लव, उच्छास, आवलि, प्रावलि का असंख्यातवां भाग, आदि इन कालों में प्रकर्ष को प्रात होरही सन्ती एक समय पर जाकर अन्तिम विश्राम लेतो हैं, यह समय सर्वोत्कृष्ट परम सक्षम होरक्षा काल विशेष है।
___ यद्यपि एक समय में परमाणु चौदह राजू गमन करजाती है, अतः समय के भी ठुस नीचे से चली परमाणु के मद्यवी रत्नप्रभा, ऋतुविमान, ब्रह्मस्वग, सर्वार्थसिद्धि उपरिम तनवातबलय, प्रादि में पहुँचने की अपेक्षा अनेक सूक्ष्म भेद किये जा सकते हैं, तथापि जगत् का उत्पाद, व्यय, नौव्यशाली कोई भी पूरा कार्य एक समय से कमती काल में नहीं होसकता हैं, अतः परम निरुद्ध काल का अंश समय ही माना जाता है जैसे कि छह ओर से छह परमाणुओं के वन्ध होने योग्य पैलों के होने पर भी एक परमाणु को अनादि अनन्त काल में उससे छोटा टुकडा नहीं होने के कारण अन्तिम लघु अवयव मान लिया जाता है अनेक: परमाणु के पिण्ड जैसे द्रवणुक, उरसंज्ञासन, रियरे घट, माहि मान्य है।
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