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श्लोक-वातिक
मतों की प्रसिद्धि अनुसार इनको गुण कह दिया गया है यों सामान्य रूप से सम्पूर्ण द्रव्यों के साथ होरहे संयोग और विभाग, संख्या, परिमाण,पृथत्तव, आदि गुणोंका आश्रय होरहा काल द्रव्य सिद्ध हैं।
विशेषेणतु सूक्ष्मामृतत्वागुरुलघुत्वैकप्रदेशत्वादयस्तस्य गुणा इति ममत्वादिविशेषगुणाश्रयश्च क्रमवृत्तोनां पदार्थानां पुद्गलादिपर्यायाणां वृत्तिहेतुत्वपरिणामक्रियाकारणत्वपरत्वापरत्वप्रत्ययहेतुत्वाख्याः पर्यायाश्च कालस्य संति यैस्तत्सत्तानुमानमिति। गुणपर्यायवान् कालः कथं न द्रव्यलक्षणभाक् ? ततः कालो द्रव्यं गुणपर्ययवत्वाज्जीवादिद्रव्यवदिति तस्याद्रव्यत्वविज्ञाननिवृत्तिः ।
हां विशेष रूप से विचार करने पर तो उस काल द्रव्य के सूक्ष्मत्व, अमूर्तत्व, अगुरुलघुत्व, एकप्रदेशत्व, अचेतनत्व प्रादि भी गुण हैं अत्यन्त परोक्षपदार्थ सूक्ष्म कहा जाता है रूप आदि से रहित को अमूर्त कहते हैं द्रव्य से द्रव्यान्तर नहीं होजाय, गुण का गुणान्तर नहीं होजाय, पर्याय का अन्य विवतं स्वरूप विपरिणाम नहीं होजाय इस असंकीर्णता का सम्पादक अगुरुलघुत्व गुण है । आकाश के कल्पना कर नापलिये गये परमाणु वरोवर छः पहलू अठकोने एक प्रदेश में ही वृत्ति होना एक प्रदेशत्व है, ज्ञान, दर्शन, परिणतियों का नहीं होसकना अचेतनत्व है इस प्रकार सूक्ष्मत्व, अमूर्तत्व, आदि विशेष गुणों का अधिकरण भो काल द्रव्य है।
तथा प्रति समय क्रम से वर्त्त रहे पुद्गल, जोव, आदि की पर्यायों स्वरूप पदार्थों की वर्तना का हेतुपना काल को पर्याय है। और परिणाम उपजा देने का कारणपना, क्रिया का कारणपना, जेठे में परत्व वुद्धि उप ने का हेतुपना, कनिष्ठ में अपरत्व बुद्धि करा देने का निमित्तपना इत्यादि नामों को धार रहीं पर्याय काल द्रव्य की हैं जिन गुण और पर्यायों से ।के उस काल की सत्ता का अनुमान होजाता है।
अर्थात्-काल द्रव्य अत्यन्त परोक्ष है अर्वाग्दी पुरुषों में से किसी एक निष्णात विद्वान् को ही उसका अनुमान होसकता है काल के ज्ञापक लिंग माने गये गुण और पर्यायें हैं इस प्रकार गुण और पर्यायों का प्राश्रय होरहा काल भला द्रव्य के उक्त लक्षण का धारी क्यों नहीं होगा ? यानी काल अवश्य ही द्रव्य है । तिस कारण अब तक सिद्ध कर दिया है कि काल ( पक्ष ) द्रब्य है ( साध्यदल ) गुणों और पर्यायों वाला होने से ( हेतु ) जोव पुद्गल आदि द्रव्यों के समान ( अन्वयदृष्टान्त ) इस प्रकार उस कालके अद्रव्यपन के विज्ञान की निवृत्ति होजाती है जो कि ग्रन्थकारने पहिली वात्तिक में निर्देश किया है । श्वेताम्बरों के यहां मुख्य काल द्रव्य का स्वीकार नहीं किया जाना समुचित नहीं है वैज्ञानिक यानी चार्वाक भी काल द्रव्य को नहीं मानते है उक्त सूत्र द्वारा इन वैज्ञानिकों के विज्ञान की निवृत्ति कर दी गयी है।
कोई पूछता है कि वर्तना नाम के लक्षण को धारने वाले मुख्य कालद्रव्य को उक्त सूत्र से काह दिया है किन्तु अब यह बतायो कि वर्तना, परिणाम, प्रादि द्वारा लक्षण करने योग्य व्यवहार काल