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श्लोक-वातिक
गुणों की विषमता होने पर बंध होजावे इसकी प्रतिपत्ति कराने के लिये सूत्र में सदृश शब्द का ग्रहण है, सदृश स्निग्ध गुणवाले परमाणुओं के परस्पर में अथवा रूक्ष गुण वाले सदृशपरमाणुओं के परस्पर में भागों की समता होजाने पर इस सूत्र द्वारा बध का निषेध किया गया है। अर्थात्-दो स्निग्ध गुणों को धारने वाले परमाणु का दो रूक्ष गुणों को धारने वाले परमाणु के साथ और दो गुण स्निग्धवाले परमाणु का दो रूक्ष गुण वाले परमाणु के साथ बंध नहीं होता है क्योंकि इनमें गुणकार यानी भाग की समानता है।
___ नन्वेवं विसदृशानां गुण साम्ये बधप्रतिषेधो न स्यादिति न मन्तव्यं, सदृशग्रहणस्य विसदृशव्याच्छेदार्थत्वाभावात् सदृशानामेवेन्यवधारणानाश्रयणात् । गुणसाम्ये वेति सूत्रोपदेशे हि सदृशानां गुण वैषम्याप बधप्रतिषेधप्रसक्ती तद्वत्तसिद्धये सदृशग्रहणं कृतं. तेन स्निग्धरूच. जात्या साम्येपि गुणवैषम्ये बंधसिद्धिः ।
___ यहां कोई आक्षेप करता है कि इस प्रकार सदृश ही परमाणुषों के गुण साम्य होने पर बंध का निषेध किया जायेगा तब तो विसदृश परमाणुओं का गुण-साम्य होने पर बंध का प्रतिषेध नहीं होसकेगा किन्तु सिद्धान्त में गुण-साम्य होने पर स्निग्ध रूक्ष या रूक्ष स्निग्ध इन विसदृश परमाणुओं का भी बंध निषेधा गया है । तीन रूक्ष गुणों के धारी परमाणुका तीन स्निग्ध गुणों के धारी परमाणु के साथ बंध नहीं माना गया है जसे कि चार स्निग्ध गुण वाले परमाणु का चार स्निग्ध वाले दूसरे परमाणु के साथ बध जाना नहीं स्वीकार किया गया है। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो नहीं मानना चाहिये क्योंकि सदृश पद का ग्रहण सूत्र में विसदृश का व्यवच्छेद करने के लिये नहीं है। " सदृशानां एव" सहशों का ही बंध नहीं होसके ऐसे अवधारण का आश्रय भी नहीं किया गया है । जिससे कि सम-गुण विसदृशों का बन्ध होजाय, अतः विसदृशों का भी गुण-साम्य होने पर बंध होना निषेधा जाता है।
यदि सदृश और विसदृश दोनों का ग्रहण करने के लिये केवल गुण-साम्ये वा" गुणों के समान होने पर किसी भी सदृश या विसदृश का वन्ध नहीं होपाता है, यों सूत्र का उपदेश किया जाता तब तो सहश परमाणुओं का गुणों के वैषम्य होने पर भी उन सम गुण वालों के समान बन्ध के निषेध का प्रसंग प्राप्त होजाता, ऐसी दशा में उन विषम गुण वालो के बंध को सिद्धि करने के लिये सूत्र में सदृश शब्द का ग्रहण किया गया है। उस सदृश शब्द करके स्निग्ध जाति या रूक्ष जाति के द्वारा समानसा होने पर भी यदि गुणों की विषमता होय तो उन परमाणुमों के बंध जाने की सिद्धि होजाती है । अर्थात्-गुणों के वैषम्य होनपर सदृशो का बंध हो ही जाता है, यह बात सहा पद देने पर ही निकलती है, नान्यथा।
किमर्थमिदं स्त्रमनवी दित्याह।