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पंचम-अध्याय
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यो पंक्ति शुद्ध कर ली जाय जो कि वात्तिक में कहा गया है।
___येषां परमाणुनां बंधस्तेषां वन्ध एव सर्वदा,येषां त्वबंधस्तेषामबंध एवेत्येकांतोप्यनेनापास्तः । केषांचिदबंधानामपि कदाचिद्वधदर्शनाद्वंधवतां चाऽबंधप्रतीतेर्वाधकाभावात् परमाणुष्वपि तन्नियमानुपपत्तेः।
कोई एकान्तवादी पण्डित यों कह रहा है, कि जगत् में जिन परमाणूओं का बंध है, उनका • सदा बंध ही है, और जिन परमाणूओं का बंध नहीं होता है, उनका सदा प्रबंध ही रहता है, प्राचार्य कहते हैं, कि यह एकान्त भी इस उक्त कथन करके निराकृत कर दिया गया है, क्योंकि कारण नहीं मिलने पर पहिले बंधको नहीं प्राप्त होचुके भी किन्हीं किन्हीं परमाणूत्रों का कदाचित् अब बंध होरहा देखा जाता है, और बघवाले परमाणूत्रों का भी भेदक कारण उपस्थित होजाने पर और पुनः द्वयधिक गुण सहितपन की योग्यता नहीं मिलने पर प्रबंध अवस्था में पड़े रहना प्रतीत होरहा है, इन प्रतीतित्रों का कोई वाधक प्रमाण नहीं है, जब नित्य निगोदिया जोव भी निकलकर व्यवहार राशि में प्राजाता है, सूर्य विम्ब, चन्द्रमण्डल, सुमेरु, प्रकृत्रिम चैत्यालय,आदि-अनादि कालीन, पुद्गल पिण्डों में से अनेक परमाणुये निकलती, मिलती रहती हैं, कितनी हो अनादि काल की परमाणुयें प्राज कारण मिल जाने पर बंध को प्राप्त होजाती हैं, अनन्त वर्षों से स्कन्धा में प्राप्त होरहीं परमाणूयें आज असंख्य वर्षों के लिये स्कन्ध से अपना पिण्ड छुड़ा बैठती हैं। अतः स्कन्ध में जैसे केवल स्कन्ध ही बने रहने का कोई नियम नहीं बनता है उसी प्रकार परमाणुओं में भी उस बंध दशा ही बने रहने या किन्हीं में प्रबन्ध अवस्था ही बने रहने का नियम कर देना नहीं बन पाता है। यहां तक यह तात्पर्य निकलता है कि जघन्य स्निग्ध गुणवाले और जघन्य रूक्ष गुण वाले परमाणुओं को छोड़ कर अन्य स्निग्ध परमाणुओं और रूक्षगुणवाली परमाणुषों का परस्पर में बंध होजाता है।
अब ऐसी दशा में सामान्य रूप से परमाणुषों के बंध जाने का प्रसंग पाजावेगा यानी दश गुण स्निग्ध वाले परमाणु का दूसरी दश स्निग्ध गुण वाली परमाणु के साथ बंध जाना बन बैठेगा जो कि इष्ट नहीं है अतः इस प्रसंग का प्रतिषेध समझाने के लिये श्री उमास्वामी महाराज को यह अग्रिम सूत्र भी रचना पड़ा है।
गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥ ३६ ॥ जिनके भाग तुल्य हैं ऐसे ऐसे परमाणुषों के गुणों की समानता होनेपर सदृश या विसदृश परमाणुमों का बंध नहीं होपाता है, हां गुणों की विषमता होने पर तो सरश या विसरश परमाणुनों का मिथ; बंध होजाता है।
गुणवैषम्ये बंधप्रतिपश्ययं सदृशग्रहणं । सदृशानां स्निग्धगुणानां परस्परं रूषगणानां चान्योन्यं मानसाम्ये बन्धस्य प्रतिषेधात् ।