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श्लोक - वार्तिक
होजाता है। अतः दोनों को भले ही एक " स्पर्श" शब्द करके कह दिया जाय। दोनों में से नियत एक स्पर्श गुण की किसी समय शीत और किसी समय उष्ण स्वरूप पर्याय होती रहतो है तथा दूसरे प्रतिनियत स्पर्श गुण की तो कदाचित् स्निग्ध और कभी रूक्ष परिणति बनती रहती है। परमाणुप्रो में भी पाई जाने वाली शीत या उष्ण परिणतियां अथवा स्कन्धों में ही पाये जाने वाली स्पशकी हलका भारी, नरम, कठोर, ये परिणतियें एवं अन्य अनन्त गुणों की परिणतियां ये कोई भी बन्ध का हेतु नहीं हैं, जल का केवल स्निग्धपना ही सतुप्रात्रों के करणों को बांध कर पिण्ड कर देता है, जल के रूप, रस, गन्ध, द्रवत्व, अस्तित्व आदिक अनेक गुरण बांधने के उपयोगी नहीं हैं ।
पत्थर या कंकड़ों के बने हुये चुने को प्रथम ही जल डाल कर बुझा लिया जाता है उस गीले चूने में जितनी ईट, पत्थर को परस्पर चुपकाने की शक्ति हैं, सूखे हुये चून में पुनः दुवारा, तिवारा, भिगो कर उतना चूपकाट नहीं रहता है । पर्वत, कंकड़, मिट्टी, आदि रूक्ष प्रकृति के पदार्थ स्वकीय रूक्षता से स्वांशों में दृढ़ बंध रहे हैं, दन्तधावन में प्रमाद करने वाले पुरुषों के दान्तों में दाल, रोटी, का कोमल भाग ही कालान्तर में हड्डी होकर दृढ बंध जाता है । मगद से लड्डुयों में जैसे चिकनापन
बंध का हेतु स्पष्ट दीख रहा है, उसी प्रकार पाषाण, काठ पक्की ईंट. में रूक्षता भो बध का कारण प्रत्यक्षगोचर है, सूखे काठ या ईंट में दस वीस वर्ष पहिले के जल को वांधे रखने बाले कारणपन को कल्पना करना अनुचित है, कारण कि गीली अवस्था से सूखी अवस्था का बन्धन प्रतीव दृढ़ है, अग्नि संयोग से पक गयी ईंट रूखेपन गुरण करके दृढ़ बंध गया है सवथा सूखे में जल की कल्पना करना घोड़े में सींग की कल्पना करना है, अतः स्निग्धपन, रूक्षपन, दोनों ही परमाणुत्रों के परस्पर बध जाने में कारण माने गये हैं ।
स्नेहगुणयोगात्म्निग्ध': रूक्षगुणयोगाद्र्क्षास्तद्भावात् पुद्गलानां बंधः स्यात् । नरूचो नाम गुणोस्ति, स्नेहाभावे रुक्षव्यवहार सिद्धेरिति चेन्न, रूक्षाभावे स्नेहव्यवहारप्रसगात् स्नेहस्याप्यभावोपपत्तेः शीताभावे चोषणव्यवहारप्र पक्तेरुगु मानुषंगात् । स्पर्शनेन्द्रियज्ञाने शीतवदुष्णगुणस्य प्रतिभासनादुष्णो गुणः स्पर्शविशेषोनुष्णाशीतपाकजेतर स्पर्श दिति चेत्, तर्हि स्नेहस्पर्शन करणज्ञाने रूक्षस्य लघुगुरुस्पर्शः शेषवदवभासनात् कथ रूक्षो गुणो न स्यात् १ तस्य बाधकाभावादप्रतिक्षेपार्हत्वाच्चतुर्विंशतिरंव गुणा इति नियमस्याघटनात् । तथा सति
बौद्धों के मत अनुसार चिकनापन, रूखापन, कल्पित पदार्थ होंय सो नहीं समझ बैठना किन्तु द्रव्य के स्नेह नामक गुण के योग से पुद्गल स्निग्ध कहे जाते हैं और वस्तु के अनुजीवी रूक्ष गुण के याग से कोई पुद्गल रूक्ष कहे जाते हैं । जल, बकरी का दूध भैंस का दूध, उंटनी का दूध, अथवा इनमें उत्तरोत्तर स्निग्धता बढ़ती जाती है, तथा रेत, वजरी, बालू, श्रादि में रूक्षता बढ़ रही देखी जाती है तिसी प्रकार पुद्गल परमाणुओं में गांठ के वास्तविक उन स्नेह रूक्ष गुरणों का सद्भाव होवे
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