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-पाकि
यथैव मेदात् संघाताभ्यां च स्कंधानामुत्पत्तेः कार्यत्वं तथाखूनामपि मेदादुत्पत्तेः कार्यत्वसिद्धेरन्यथा दृष्टविरोधस्यानुषंगात् । न हि स्कंधस्यारंभकाः परमाण्वो न पुनः परमाणोः स्कंध इति नियमो दृश्यते, तस्यापि भिद्यमानस्य सूक्ष्मद्रव्यजनकत्वदर्शन ! त् भिद्यमानपर्यन्तस्य परमाणुजनकत्वसिद्धेः । यहां कोई वैशेषिक प्राक्षेप करता है, कि परमाणू यें कारण द्रव्य ही हैं, ऐसा नियम है, परमायें किसी के कार्य हो रहे नहीं हैं, ग्रतः परमाणुओं के कारण द्रव्यपने का नियम होजाने से जैनों का परमाणुओं में उत्पत्ति को साधने के लिये दिया गया पुद्गल पर्यायत्व हेतु प्रसिद्ध हेत्वाभास ही है । ग्रन्थकार कहते हैं, कि यह तो नहीं कहना क्योंकि उन परमाणूत्रों का कार्यपना भी सिद्ध है, देखो जिस प्रकार भेद से या संघात से अथवा भेद - संघात, दोनों से उत्पत्ति होजाने के कारण स्कन्धों का कार्यपना प्रसिद्ध है, तिसी प्रकार प्ररण्यों का भी छिन्नता से भिन्नता से उत्पत्ति होजाने के कारण कार्यपना सिद्ध है, अन्यथा यानी ऐसा नहीं मान करके ग्रन्य प्रकारों से यदि परमाणूत्रों को सवथा नित्य ही माना जायगा तो प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा देखी जा रही पदार्थ व्यवस्था से विरोध ठन जाने का प्रसंग आा जावेगा | बालक बालिका भी पिंड के छिद, भिद जाने से छोटे छोटे टुकटों की उत्पत्ति हो रही को देखते हैं, इसी तारतम्य ग्रनुसार टुकड़े होते होते अन्त में जाकर सब से छोटे टुकटे हुये परमाणू पर विश्राम करना पड़ेगा तरतमभाव से हुआ प्रकर्षमाणपना कहीं अन्त में जाकर अवश्य विश्राम लेता है, उपजे हुये छोटे अवयव का विश्रान्तिस्थल परमाणू है ।
वैशेषिकों के यहां स्कन्ध के प्रारम्भ तो परमाणूटों मान लिये जावें किन्तु फिर परमाणू का आत्म-लाभ कराने वाला स्कन्ध नहीं माना जाय यह कोई नियम अच्छा नहीं देखा जाता है, जबकि मूसल, चाकी, मोंगरा, आदि भेदक कारणों से भेदे जा रहे उस स्कन्ध को भी सूक्ष्य द्रव्य का जनकपना देखा जारहा है, उत्तरोत्तर भेदा जा रहा पदार्थ पर्यन्त अवस्था में परमाणू तक पहुँच जाता है, अतः प्रशुद्ध द्रव्य या वैशेषिकों के मत अनुसार प्रथवा द्रव्य कह दिया गया है, जीव आदि द्रव्यों के समान पुद्गल परमाणुओं पर ही दृष्टि ठहर जायेगी पुद्होरही निर्णीत कर ली जाती है, इस सूत्र द्वारा
भेद को ही परमाणु का जनकपना सिद्ध हुआ । यहां ऊर्ध्वता सामान्य की प्रक्रिया अनुसार परमाणु को जब वास्तविक पुद्गल द्रव्य को जताया जायेगा तो गल की स्वाभाविक शुद्ध परिणति परमाणु द्रव्य में पुद्गलों की उत्पत्ति का समीचीन परामर्श करा दिया गया है।
"उक्त सूत्र द्वारा सामान्य रूप करके अणूत्रों और स्कन्धों की भेद या संघात श्रथवा एक समय में हो रहे दोनों भेद संघातों से उत्पत्ति होजाने का प्रसंग प्राप्त होने पर विशेष प्रतिपत्ति कराने के लिये श्री उमास्वामी महाराज श्रग्रिम सूत्र को कहते हैं ।
भेदाद ॥ २७ ॥
केवल भेद से ही अकी उत्पत्ति होती है । संघात या भेद-संघात दोनों से अणु नहीं उपज