________________
पचमं प्रत्याये
रहेज
तः अभिधा या लक्षरणा द्वारा पदों करके पहिले कहे जा चुके पदार्थों का पुनः श्रासत्ति, योग्यता, प्राकांक्षा, तात्पर्य अनुसार अन्वय कर शाब्दबोध करना यह भाट्टों या जरन्नैयायिकों के यहां अभिहितान्वय की अन्वर्थ संज्ञा की गयी है। दूसरे गुरु जी माने गये प्रभाकरों का यह अभिप्राय है, कि अन्वय स्वरूप वाक्यार्थं को समझाने मे भी पदों की शक्ति मानी जाय जैसे कि अभिधा या लक्षणा वृति द्वारा पदों की स्वकीय स्वकीय अर्थ का कथन करने में शक्ति मानी गयी है, क्योंकि व्यवहार करके अन्वित हो रहे ही वाक्यार्थका पदों करके उपस्थापन किया जाता है, पदार्थों के श्रन्वित अर्थ में ही संकेत-ग्राही पुरुष को शक्तिग्रह हुआ है,
उसको स्पष्टयों समझिये कि एक स्थल पर उत्तम प्रयोजक बृद्ध और मध्यम प्रयोज्य बुड्ढा तथा तीसरा दो वर्ष का बालक बैठा हुआ है, आज्ञा देने वाले उत्तम बृद्ध ने देवदत्त नामक मध्यम बुड्ढे को कहा कि "हे देवदत्त गाव को लाम्रो" उस वाक्य को समझ कर देवदत्त बुड्ढा बेचारा सींग सासना वाली व्यक्ति को उपथित करदेता है। निकट बैठा हुआ बालक उस चेष्टा करके उस वाक्य की गाय को ले आना है, इस अर्थ में बोधकता को ज्ञात कर लेता है । पश्चात् - उत्तम बुड्ढे ने देव दत्त को कहा कि गौ को ले जाओ और घोड़े को ले जाको" ऐसा प्रयोग होने पर गाय का ले जाना और घाड़े का ला देना देख कर वह बालक अन्वय, व्यतिरेकों करके ऐसी पद-शक्ति का निर्णय कर लेता है कि कारक पदकी शक्ति तो क्रिया पदके अर्थसे अन्वित हो रहे कारक अर्थको समझाने में है, और क्रियापद की बाचकत्व शक्ति उन कारक पदोंके अर्थोंसे अन्वित हो रही क्रिया को समझाने में है । तिस ही कारण संकेत ग्रहण कर चुके बालक या किसी भी अन्य भाषा का अध्ययन करने वाले जीव को प्रयोग काल में पहिले से ही परस्पर अन्वय प्राप्त कर चुके पदार्थों को बुद्धि उपज जाती है, क्योंकि शाब्दबोध के प्रधान बीज होरहे संकेत ग्रहण को करते समय परस्पर अन्वित होरहे पदों के कथन अनुसार ही शक्तिग्रह हुआ था, उस संतान प्रतिसन्तान से प्राप्त होरही टेव का परित्याग नहीं किया जा सकता है, अतः गौरब भले ही होजाय अन्वय ( वंश ) के अंश छूटते नहीं हैं, पहिले से ही अन्वित हो रहे क्रिया कारकों का बोध उपजता है, पश्चात् शक्तिग्रह होता है । व्यवहार काल में विशेष पदों की निकटता होजाने से तात्पर्य वृत्ति अनुसार अगले, पिछले, पदों की स्मृति कर अन्वित होरहे पदों के अभिधान अनुसार शाब्दबोध होजाता है । पहिले पद अन्वित होकर अन्वित पदार्थों को कहते हुये वाक्यार्थ को समझा देते हैं, इस कारण अन्विताभिधान-वादी प्राभाकारोंका अन्विताभिधान ग्रन्वर्थनामा है।
इस प्रभाकारों के सिद्धान्त में भट्टों को यह अस्वरस दीखता है कि अन्वित होकर शक्ति मानने पर भी प्राभाकारों को अन्वय विशेष की अवगति करने के लिये आकांक्षा, योग्यता, आदि कारण अवश्य स्वीकार करने पडेंगे। उन ही क्लृप्त होरहे आकांक्षा आदि से कार्य चल जाता है, अतः
३८