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पंचम अध्याय
ग्रीवा आदि वाला अर्थ समझ लेना चाहिये, यो संकेत ग्रहण कर पुनः वक्ता के शब्द से आत्मा को शब्दस्फोट द्वारा घटाथ की प्रतिपत्ति होजाना स्वीकार करते हैं क्योंकि संकेत किया गया शब्द कहीं न कहीं अर्थ की प्रतिपत्ति कराने का हेतु है, उसी प्रकार गन्धस्फोट आदि में भी ये ही युक्तियां चरितार्थ होजाती हैं, कोई अन्तर नहीं है, उनको सुनिये, जैसे पद-फोट या वाक्यस्फोटका संकेत ग्रहण करलिया जाता है उसी प्रकार गन्ध आदि स्फोट का भी संकेत ग्रहण यों कर लिया जाता है कि इस प्रकार के एक गन्ध को भले प्रकार सूंघ कर इस प्रकार इस जाति का अर्थ समझ लिया जाय और इस प्रकार के स्पर्श को च्छा छू कर इसके समानजातीय ग्रन्य ऐसे स्पर्श वाले अर्थों को समझ लिया जाय एवं इस ढंग के रस का ग्रास्वादन कर इस प्रकार के रस वाले इतर पदार्थों को जान लिया जाय अथवा ऐसे रूप का अवलोकन कर इस जाति के अन्य रूपवान पदार्थों की प्रतीति कर ली जाय, यों संकेतों को ग्रहण कर चुके जिज्ञासुनों को पुन: कहीं पर तिस जाति के गंध आदि का उपलम्भ होजाने जैसा पहिले देखने सुनने में आया था उसी प्रकार के अर्थ का निर्णय होजाना प्रसिद्ध हो रहा है । अर्थात् -" घटपदात् घटरूपोऽर्थो बोद्धव्यः आनय पदात् आनयन-क्रिया प्रत्येतव्यः, घट पद से घट अर्थ समझ लिया जाय और श्रानय पद से श्रानयन क्रिया जान ली जाय, ऐसा संकेत ग्रहण हो जानेपर पुनः उन शब्दों के श्रवरण अनुसार वैसे अर्थ कि प्रतिपत्ति होजाने को देखते हुये जैसे क्याकरण पदस्फोट या वाक्यस्फोट की उत्पत्ति कर लेते हैं उसी प्रकार वेला, मौलश्री, चम्पा, चमेली, जुही के फूलों की गन्ध को एकवार सूंघ कर वृद्ध वाक्य द्वारा संकेत ग्रहण कर चुका कुमार पुनः वैसी गंध को सूंघता हुआ उन वेला आदि के फूलों की प्रतिपत्ति कर लेता है तथा आग, मकराना, मखमल, आदि को छूकर उनमें संकेत कर चुका पुरुष पुनः अधेरे में भो कहीं उन पदार्थों का स्पर्श होजाने पर वैसे उन अग्नि आदि अर्थों का परिज्ञान कर लेता है और आम, केला, पेड़ा, इमरती, अगूर, अनार आदि के रसों को चाटकर संकेत ग्रहण कर चुका बालक पुनः कहीं अधेरे में भी उन रसों का स्वाद लेता हुआ उन ग्राम, अमरूद आदि का परिज्ञान कर लेता है एवं कामिनी, रत्न, सुवर्ण, पशु पक्षी, आदि के रूपों को देख कर उन रूपवान पदार्थों में संकेत ग्रहरण कर रहा निकट बैठा हुआ युवा पुरुष पुनः अन्यत्र वैसे वैसे रूपों को देख कर कामिनी, रत्न आदि पदार्थों की ज्ञप्ति कर लेता है, रोगी की नाड़ी गति अनुसार वैद्य भूत, भविष्य के परिणाम को कह देता है, गणित ज्योतिष या फलित ज्योतिषशास्त्र के वेत्ता विद्वान भूत, भविष्य, वृत्तान्तों को जान लेते हैं ।
गन्धादि के द्वारा पूर्व में धार लिये गये धारणा नामक संस्कार को प्राप्त कर चुके और उन उन संकेत ग्रहीत वाक्यार्थों की प्रतिपत्ति के हेतु होरहे ग्रात्मा के बुद्धि-स्वरूप गन्ध पदस्फोट, स्पर्श पद स्फोट आदि होना युक्ति सिद्ध हो जाता है जैसे कि शब्दों का बुद्धि स्वरूप पदस्फोट मान लिया गया था । तथा पहिले पहिले संकेत ग्रहरण करते समय गन्ध आदि के बिशेष ज्ञानों के संस्कार को धार रहे आत्मा को अन्तिम गन्ध, स्पर्श आदि विशेषों की उपलब्धि पश्चात् गंध आदि
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