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________________ २७६ श्लोक-वालिफ विशेषों के समुदाय करके जाने गये अर्थ की प्रतिपत्ति का हेतु हो रहे गंध वाक्य स्फोट, स्पर्शवाक्यस्फोट होना भी सुघटित है । " पद अर्थात् ग्रात्मा "देवदत्त घटमानय" इस शब्द पंक्ति के देवदत्त पद को सुनाता है इस पद का संस्कार जमा लेता है पुनः " घटं पद को सुन कर इसकी धारणा कर लेता है, पुनः अन्तिम आनय को सुन कर भट वाक्य प्रतिपत्ति कर लेता है यों होते देखकर वाक्यस्फोट को जैसे वैयाकरण मान लेते हैं उसी प्रकार पहिले गन्ध को सूंघ कर उसका संस्कार धार लिया गया पश्चात् - दूसरी गन्ध को सूंघा उसकी भी धारणा को श्रात्मा में जमा लिया, यों पहिले पहिले गंध ज्ञानों के संस्कारों का आधान कर रहा आत्मा अन्तिम गन्ध का धारणज प्रत्यक्ष कर पूरी गंध धाराओं के समुदाय की प्रतिपत्ति कर लेता है, प्रतः इस प्रतिपत्ति का कारण गन्ध वाक्य स्फोट भी घटित हो जाता है, इसी ढंग से स्पर्श, रस, रूपों, के पहिले पहिले धार लिये गये संस्कारों वाले आत्मा को अन्तिम स्पर्शादि की उपलब्धि हो जाने पर उन उन स्पर्श समुदाय आदि की हुई प्रतिपत्ति के कारण माने जाने योग्य स्पर्श वाक्य स्फोट, रसवाक्यस्फोट, रूपवाक्यस्फोट, भी गढ़े जा सकते हैं । नाड़ीगति स्फोट आदि अनेक बुद्धि-स्वरूप स्फोटों को मानने में वैयाकरणों के यहां कोई क्षति नहीं पड़ जायगी " संग्रहःखलु-' कर्त्तव्यः परिणामे सुखावहः, इस नीति से भी कथंचित् लाभ होजाता है । तथा लोकव्यवहारस्यापि कर्तुं सुशकत्वात् कायप्रज्ञप्तिवत् । हस्तपादकरणमात्रिकांगहारादिस्फोट द्वापदादिस्फोट एवं घटते न पुनः स्त्राव यंत्र क्रिया विशेषाभि-व्यंग्यो हंसपक्ष्मादिहस्तस्फोटः स्वाभिधेयार्थप्रतिपत्ते हेतुरिति स्वल्पमति संदर्शनमात्रम् । गंध पद स्फोट, गंधवाक्य स्फोट, आदि को साधने के लिये तिस प्रकार लोक व्यवहार सुलभता से किया जा सकता है। जैसे कि शरीर के द्वारा भूख प्यास, आदि का प्रज्ञापन करने वाले सूचक चिन्ह कर दिये जाते हैं अर्थात् कोई पथिक उस देश की भाषा का नहीं जानता हुआ पानी पीने के लिये अपने होठ के साथ तिरछी अर्धजली को चिपटा कर लोक द्वारा संकेत कर देता है इतने से ही विभिन्न देश के मनुष्य को प्यासा जानकर पानी पिला देते हैं, घोड़े का संकेत कर देने पर चढ़ने या बेचने के लिये घोड़ा ला देते हैं, प्रांख मीच कर या मटका कर भी कई व्यंग कर दियेजाते हैं अथवा हस्तस्फोट, पादस्फोट, करणस्फोट. मात्रिकास्फोट, गहारस्फोट, नितम्ब चालनस्फोट आदि के समान सुलभता से लोक व्यवहार को करते हुये गन्ध स्फोट, स्पशंस्फोट, आदि मान लेने चाहिये | यदि यहां वैयाकरण यों कहैं कि पदस्फोट, वाक्यस्फोट, आदि ही सुघटित हैं किन्तु फिर नाचते समय नर्तक के अपने अपने हाथ, पैर, अंगुली आदि अवयवों की क्रिया विशेष से प्रगट होने योग्य हंस, पक्ष्म, आदि हस्तस्फोट तो अपने निर्देश्य या अभिनय करने योग्य अथ की प्रतिपत्ति का हेतु घटित हो पाता है । प्राचार्य कहते हैं कि इस प्रकार किसी का कहना तो अपनी बुद्धि की प्रत्यल्पता को दिखलाना मात्र है ।
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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