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________________ पंचम व्याय इस सूत्र की चौथी वार्तिक का विवरण किया जाता है । यदि पुनरंतःप्रकाशरूपः शब्दम्फोट: पूर्ववर्णज्ञानाहितसंस्कारस्यात्मनोन्त्यवर्णश्रवयानंतरं वाक्यार्थनिश्चय हेतु बुद्ध्यात्मा ध्वनिभ्योऽन्यो भ्यु गम्यते, स्फुटत्यर्थोस्मिन् प्रकाशत इति स्फोट इस्पभिप्रायात्, तदाप्येतस्यैकाने कात्मकत्वे स्याद्वादसिद्धिरात्मन एव वाक्यार्थग्राहकत्वपरिणतस्य भाववाक्यस्य संप्रत्ययात् तस्य फांट इति नामकरणे विरोधाभावात् । तस्य निरंशत्वे तु प्रतीतिविरोधः, सर्वदा तस्यैकानेकस्वभावस्य त्रिधांशकस्य प्रतिभासनात् । प्राख्यात शब्द, संघात, श्रादि को वाक्य कहने वाले न्यायवेदी पण्डित बुद्धि को भी वाक्य मानते हैं वहिरंग वाक्य को शब्दस्फोट मानने में कुछ अवधीरणा पाकर अब वैयाकरण विद्वान् प्रन्तरंग ज्ञान को स्फोट मानते हुये पूर्व पक्ष कहते हैं । स्फोट वादी के ऊपर विचार चलाते हुये प्राचार्य महाराज ने सबसे प्रथम दो विकल्प उठाये थे कि वह स्फोट शब्द स्वरूप है ? अथवा क्या शब्द से किसी न्यारे पदार्थ स्वरूप है ? प्रथम विकल्प का विचार होचुका है, अब दूसरे प्रशब्दात्मक स्फोट के विकल्प का विचार चलाते हैं । ર૭૨ે अन्तरंग में ज्ञानप्रकाशरूप होरहा बुद्धिस्वरूप स्फोट है, जोकि पूर्व पूर्व में सुने जा चुके वर्णों के ज्ञान के धारे गये संस्कारोंवाले आत्मा को अन्तिम वर्ण के श्रावरण प्रत्यक्ष अनन्तर हुई वाक्य के अर्थ की निश्चय प्रतिपत्ति करा देने का हेतु है, यह बुद्धि-स्वरूप शब्द स्फोट उन वायु स्वरूप या शब्दस्वरूप ध्वनियों से निराला स्वीकार किया गया है । जिस ज्ञान में वाक्यार्थ स्फुट होकर भास जाता है, यानी शाब्दबोध प्रकाश जाता है, यों इस निरुक्ति करने के अभिप्राय से यह बुद्धि स्वरूप स्फोट माना गया है । आचार्य कहते हैं, कि यदि द्वितीयपक्ष अनुसार फिर यों कहोगे तब भी इस बुद्धिस्वरूप शब्द-स्फोट को एकात्मक अनेकात्मकपना मानने पर स्याद्वाद सिद्धान्तकी ही सिद्धि होती है, क्योंकि आत्मा के ही वाक्यार्थ के ग्राहक होकर परिणम गये ज्ञान स्वरूप भाववाक्यपन का इस तुम्हारे स्फोट करके समीचीन ज्ञान होता है, उस भाववाक्य-स्वरूप श्रात्मा का स्फोट ऐसा नाम कर देने में हमें कोई विरोध नहीं करना है । पदार्थ ज्ञान को आवरण करने वाले ज्ञानावरण कर्म और तदनुकूल वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से विशिष्ट होरहा आत्मा पदस्फोट है, तथा वाक्यार्थ ज्ञान को रोकने वाले ज्ञानावरण और वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से सहित होरहा श्रात्मा वाक्यस्फोट है वाक्य या वाक्यार्थ ज्ञान के उपयोगी विशेषपुरुषार्थ से युक्त होरहे प्रात्मा की विशेषबुद्धि ही भाववाक्य या स्फोट है, हाँ उस बुद्धिस्वरूप शब्दस्फोट को यदि प्रशों से रहित माना जायगा तब तो प्रतीतियों से विरोध प्रावेगा क्योंकि एक स्वभाव, अनेक स्वभाव, एकानेकस्वभाव, यो तीनप्रकार अंशों के धारी उस भाववाक्य का सदा प्रतिभास होता रहता है । भावार्थ - जैन सिद्धान्त अनुसार भावमन, भाव इन्द्रियां भाव वाक्य, ये सब आत्मा की परि ३५
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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