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पंचम-अध्याय
से मिलकर लम्बा सूत उपजता है, सूत से अड़ियां और अड़ियों मे प्रांटे और प्रांटों से थान होजाता है उसी प्रकार अक्षर के छोटे छोटे अंशों से एक अक्षर और अनेक अक्षरों से एक पद, तथा अनेक पदों से एक वाक्य होजाता है तिस कारण वाक्य स्वरूप माना गया आख्यात शब्द बेचारा एक स्वभाव वाला ही नहीं है जो कि वैयाकरणों ने मान रखा है किन्तु कथंचित् अनेक स्वभावों वाले उस पाख्यात शब्द की प्रतीति होरही है प्रतीति-सिद्ध पदार्थ को सहर्ष स्वीकार करलेना चाहिये । यहाँ तक वैयाकरणों के मत में वाक्य माने गये प्राख्यात शब्द का विचार कर दिया गया है।
एतेन पदमाद्यमंत्यं चान्यद्वा पदांतरापेक्षं वाक्यमेकम्बभावमिनि निरस्तं. तस्या प्याख्यातशब्दवत्कथंचिदनेकस्वभावस्य प्रतिभासनात् ।।
___ इस उक्त कथन करके " देवदत्तः प्रोदनं पचति " देवदत्त भात को पकाता है यहाँ आदि का पद देवदत्त अथवा अन्त का पद पचति एवं और भी कोई मध्य का पद तो अन्य पदों की अपेक्षा रखता हा एक स्वभाव वाला वाक्य है, इस वैयाकरणों के मन्तव्य का भी प्राचार्य ने निराकरण कर दिया है क्योंकि अन्य पदों की अपेक्षा रखते हुये उस पाद्य पद या अन्तिम पद का आख्यात शब्द के समान कथंचित् अनेक स्वभाव वाले का ही प्रतिभास होरहा है। बात यह है कि जितने भी कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, विशेषण, क्रिया इत्यादिक अर्थों के वाचक पदों करके शब्दबोध होता है परस्पर-अपेक्षा रखते हुये उन पदों के निराकांक्ष होरहे समुदाय को वाक्यपना प्रसिद्ध है, अतः वह वाक्य आख्यात शब्द के समान अनेक स्वभावों वाला है।
एकोन- यवः शब्दो वाक्यमित्ययुक्तं, तस्य सावयास्य प्रतिभासनात् । तस्य चावयवेभ्योनान्तरत्वेऽनेकत्वमेव स्यात्, तदर्थान्तरत्वे संबंधासिद्धिः उपकारकल्पनायां वाक्यस्यावयधकार्य प्रसंगस्तैरुग्कार्य दवयवानां वा वाक्यकार्यता तेनोपक्रिमाणत्वाद उपकारम्य ततोर्थातनन्वे सबंधारद्धिनुपकारात् तदु कागंतरकल्पनायामनवस्थ प्रसंग इति वाक्यतदवयवभेदाभेदेकांतादिनामुपालम्मः । ग्दाद्वानां यथाप्रतीतिकथंचित्तदभेदापगमात् एकानेकाकारप्रतीतेरेकानेकात्मकस्य जात्यंतरस्य व्यवस्थितः ।
अशों से रहित होरहा एक निरवयव शब्द तो वाक्य है यह न्यायवेदियों का कथन भी युक्तियों से रीता है क्योंकि उस अवयवों से सहित होरहे वाक्य का सभी विद्वानों को परिज्ञान होता है कर्ता, कर्म, क्रिया, करण आदि सभी तो अपने अपने अर्थों को लिये हुये वाक्य के अवयव होरहे हैं जैसे कि एक थान के अनेक तन्तु अवयव होरहे हैं. यदि उस वाक्य को अपने कर्ता, कर्म, आदि वाक्यों से अभिन्न माना जायगा तो वह वाक्य अनेक अनेक स्वभाव वाला ही होगा। अनेकों से अभिन्न अनेक पदार्थ हैं या अनेक स्वभावों वाला ही है । हाँ यदि वाक्य का उन अवयवों से भेद माना जायेगा, तो,वाक्य और अवयवों के परस्पर हो रहे सम्बन्ध की सिद्धि नहीं बन सकेगी और