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श्लोक-यातिक
को डण्डे करके घेरला" इत्यादि पदों के साथ कथंचित् तादात्म्य को धार रहा वाक्य एक अनेक स्वभाव वाला ही कथन करने योग्य उचित पड़ा जैसे कि पहिले अभि, प्राङ, अज्, शप् हि, प्रादिक शब्दों के साथ कथंचित् तदात्मक होरहा पाख्यात शब्द बेचारो एक और अनेक स्वभाव वाला मान लिया जा चुका है यदि वाक्य के एक अनेक स्वभावों का निराकरण किया जायगा तो वैयाकरणों को बौद्धों के क्षणिकत्व एकान्तके अवलम्बन करने का प्रसग प्राजायगा । शब्द को नित्य मानने वाले वैयाकरण उन क्षणिकवादी बौद्धों का सहारा लेने के लिये कथमपि उत्कण्ठित नहीं होंगे।
क्रमभुवयं केषांचिद्वर्णानां वास्तवैकपदन्वाभावेक्षणकवर्णभागानामपि पा मार्थिकैकवर्णत्वासिद्धेम्तथोपगमे वांतर्वहिश्चात्मनो घटादेश्च क्रममाव्यनेकपर्यायात्म हस्याभावानुपंगात । तास्तत्मद्भ वमभ्युपगच्छता क्षणिकानेकक्रमवृत्तिवर्णभागात्मकमेकं वर्णमभ्युपेयं , तद्वदनेकक्रमवर्तिवर्णन्मकमेकं पदं तादृशानेकपदात्मकं च वाक्यमे तव्यं । ततो नख्यातशब्दो वाक्यात्मैकर भाव एव कथंचिदनेकम्वभावस्य तम्य प्रतातेः ।
____ क्रम क्रम से हुये देखे जा रहे नियत किन्हीं किन्हीं वर्णों का यदि वास्तविक रूप से एक पदपना नहीं माना जायगा तो एक वर्ण के क्षणिक अशों का भी समुदित होकर वास्तविक एक वर्ण होजाना नहीं सिद्ध होसकेगा और तैसा स्वीकार कर लेने पर यानी क्रमभावी अनेक अशों का एक पिण्ड होजाना नहीं मानने पर तो अन्तरंग प्रात्म तत्व को और वहिरंग घट, पट, आदि पथार्थों को क्रमभावी अनेक पर्यायों के साथ तदात्मक होरहेपन के अभाव का प्रसंग आजावेगा। अर्थात् एक प्रात्मा अनेक सुख, दुख, राग, द्वेष, मतिज्ञान, श्र तज्ञान, दान, लाभ, आदि परिणति-प्रात्मक नहीं होसकेगा। तथा एक घट अनेक कपाल, कपालिका आदि अवयव-प्रात्मक और कपड़े का एक थान अनेक तन्तु-प्रात्मक नहीं बन सकेगा तिस कारण उन प्रात्मा घट, पट, आदि अशी पदार्थों के सद्भाव को स्वीकार करने वाले वैयाकरण करके क्रम से वर्त रहे और क्षणिक होरहे अनेक वर्ण भागों के साथ तदात्मक होरहा एक वर्ण प्रसन्नता-पूर्वक मान लेना चाहिये अर्थात्-पाठ अशों की एक खाट, या दो हाथ, दो पाँव, नितम्ब, पीठ, उरःस्थल, सिर, इन आठ अगों का एक शरीर माना ही जाता है, प्रत्येक सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान के अंग भी आठ इष्ट किये गये हैं, इसी प्रकार भ का स्वर पूर कर गाने वाले गन्धर्व देर तक प्रलापते रहते हैं वहाँ प्रवर्ण के कितने ही अंश स्पष्ट सुने जा रहे हैं, शीघ्र बोल दिये गये प्रकार में भी अनेक उसके अवयव भूत प्रश हैं उनका समुदाय एक "अ" अक्षर है।
बस उसी "अ" के समान क्रम से वर्त रहे अनेक प्र, भ, प्रादि वर्गों के साथ तदात्मक को धार रहा एक पद होता है और पिण्ड होगहे तिन्हीं वर्ण या पदों के समान अनेक पदों के साथ तदात्मक होरहा वाक्य इष्ट कर लेना चाहिये देखिये फूली पौनी में पाये जा रहे छोटे छोटे रूपांत्रों