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________________ २६. श्लोक-बातिक जैन कहेंगे कि वह पाख्यातशब्दस्वरूप वाक्य बेचारा ( पक्ष ) एक स्वभाव वाला हो नहीं है। अनेक वर्ण-प्रात्मक होने से ( हेतु ) देखो पति, करोति, आदि वाक्य अनेक स्वभाव वाले हैं, पच् धातु का अर्थ पाक स्वभाव है, तिप् प्रत्यय के अर्थ तो वर्तमानकाल, स्वतन्त्रकर्तृत्व, एकत्व संख्या प्रादि स्वभाव है, अतः एक स्वभाव वाला प्राख्यात शब्द नहीं होसका जोकि स्फोट माना गया है। यदि वैयाकरण यों कहैं कि अन्याज, पचति, आदि पाख्यातों में पड़े हुये अभिप्रा- अज x शप्x हि । पच् ४ शप् + तिप् इत्यादि वर्णों से प्राख्यात शब्द भिन्न ही है। जोकि स्फोट माना गया है, माचार्य कहते हैं कि यह वैयाकरण का कहना अयुक्त है, क्योंकि तिस प्रकार की प्रतीति नहीं होती है, अभ्याज में पड़े हुये वर्गों के सिवाय या पचति में पड़े हुये वर्गों के अतिरिक्त किसी प्राख्यात शब्द की प्रतीति नहीं होरही है। . वर्णव्यंग्योंत्यवर्णश्रवणानंतरमेकः प्रतीयत एवेति चेन्न, वर्णानां प्रत्येकं समुदित नां वा स्फोटाभिव्यक्ती हेतुत्वाघटनादर्थप्रतिपत्ताविव सर्वथा विशेषाभावात् । यदि पुनः कथंचिद्वर्गः स्फोटाभिव्यक्तिहेतवः स्युस्तदा तथैवार्थप्रतिपत्तिहेतवः संतु किमनया परम्परया ? वर्णेभ्यः स्फोटस्याभिव्यक्तिस्ततोभिव्यक्तादर्थप्रतिपत्तिरिति । कथंचिदव्यतिरिक्तः स्फोटो वर्णेभ्य इति तस्य श्रोत्रबुद्धौ प्रतिभासनोपगमे कथमेकानेकस्वभागेसौ न स्यात् ? सुखदुःखादिपर्यायान्मकान्मवत् नवपुराणादिविशेषात्मकस्कंधवद्वा । " यदि नेयाकरण यों कहैंकि वर्षों से प्रगट होने योग्य और अन्तिम वर्णके सुनने के पश्चात् एक स्वभाववाला पाख्यात शब्द प्रतीत हो ही जाता है। प्राचार्य कहते हैं, कि यों तो नहीं कहना क्योंकि प्रत्येक प्रत्येक होरहे वर्णों को अथवा समुदाय प्राप्त होरहे वर्गों को स्फोट की प्रभिव्यक्ति में कारणपना घटित नहीं होता है, जैसे कि मीमांसकों ने अर्थ की प्रतिपत्ति कराने में प्रत्येक ध्वनियों या समृदित ध्वनियों को निमित्त कारण नहीं होने दिया था । हमारे यहां अर्थ की प्रतिपत्ति कराने में और तुम्हारे यहां स्फोट की अभिव्यक्ति कराने में प्रत्येक शब्द या समुदित शब्दों की कारणता की सभी प्रकारों से कोई विशेषता नहीं है। अर्थात्-"स्फोटोऽर्थप्रतिपत्तिहेतुर्न ध्वनयः,, इत्यादि ग्रन्थ द्वारा जैसे माप वैयाकरण प्रत्येक शब्द या समुदित शब्दों को अर्थ की प्रतिपत्ति का निमित्त-पना उड़ा देते हैं, उसी प्रकार हम जैन भी स्फोट की अभिव्यक्ति करने में प्रत्येक या समुदित शब्द को कारण होजाने का खण्डन कर देवेंगे, आप जो अपने लिरो समाधान करेंगे वही समाधान हमारे लिये लागू होजायगा हमारे सिद्धान्त का प्रत्याख्यान करना तुम्हारे सिद्धान्तपर भी चरितार्थ कर दिया जायगा, इस विषय का हम, तुम, में कोई रेफ मात्र भी अन्तर नहीं है, आपके यहां मीमांसा-श्लोकवात्तिक ग्रन्थ है, तो हमारे यहां तत्वार्थश्लोकवात्तिक म्हान् ग्रन्थ है, वात्तिकों की चिकित्सा वात्तिकों से कर दी जायगी। । यदि सम्हल कर प्राप फिर यों कहें कि अनेक वर्ण ही कथंचित् स्फोट की अभिव्यक्ति
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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