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पंचम-श्रव्याय
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उत्पत्ति हो जाती है। बांस प्रादिके फटने पर विभाग से भी शब्द पैदा होता है, शब्द से भी शब्द उपज जाता है "संयोगाद्विभागाच्छब्द्वाच्च शब्दनिष्पत्ति: ३१ : वैशेषिक दर्शन के द्वितीय अध्याय में प्रथम प्रान्हिक का यह सूत्र है । ) अतः वायु द्रव्य तो उस शब्द का समवायीकारण नहीं माना जाता है, जैसे कि श्रन्वयव्यतिरेक नहीं घटने से पृथिवी, जल, तेजो द्रव्य, ये शब्द के समवायो कारण नहीं हैं तुम्हारे यों कहने पर, तब तो यही जैन सिद्धान्त अच्छा जंचजाता है, कि शब्द नामक पर्याय रूप से परिणमने योग्य पुद्गल द्रव्य ही शब्द का उपादान कारण मान लिया जाम्रो, वायु, आकाश, आदि तो प्रत्याव श्यक होकर नियत कारण नहीं हैं, यानी वायु या प्रकाश ही शब्द स्वरूप होकर नहीं परिणमते हैं, हाँ वे शब्द की उत्पत्ति में सहायक मात्र हैं, अतः उस शब्द के सहकारी कारण होकर प्रसिद्ध जाते हैं ।
कुतस्तसिद्धिति चेत, पृथिव्यादेः कुतः १ प्रतिविशिष्ट स्पर्शरूपरसगंधानामुलंमात्पृथिव्याः सिद्धिः, स्पर्शरूपरसविशेषाणामुपलब्धेरपां. शेषरुपधे तेज नः । स्पर्शविशेषस्योपलं भाद्वायाः । स्वाश्रयद्रव्याभावे तदनुपपत्तेरिति चेत्, तर्हि शब्दस्य पृथिव्यादिध्वसंभविनः स्फुटमुग्लंभात्तदाश्रयद्रव्यस्य भाषावर्गण | पुद्गलस्य प्रसिद्धिरन्यथा तदनुपपत्तेः ।
यदि वैशेषिकों का पक्ष ले रहे पर पण्डित यों विभीषिका दिखलावें कि बताओ उस शब्द परिणतियोग्य पुद्गल द्रव्य की किस प्रमारण से सिद्धि करोगे ? यों कहने पर तो हम जैन भी यों धोंस देसकते हैं, कि तुम ही बताओ कि पृथिवी आदि न्यारे न्यारे चार तत्वों को प्राप कैसे किस ढंग से साधेंगे ? यदि वैशेषिक यों कहें कि अन्य द्रव्यों की अपेक्षा प्रत्येक पृथिवी तत्व में विशिष्ट रूप से पाये जा रहे पार्थिव स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, गुरणों की उपलब्धि होजाने से पृथिवी द्रव्य को सिद्धि होजाती है, विशिष्ट हो रहे स्पर्श, रूप, रसों, की उपलब्धि होजाने से जल द्रव्य को साध लिया जाता है, उष्णस्पर्श और भास्वर रूप इन विशेषगुणों के देखने से तेजोद्रव्य की प्रसिद्धि होजाती है, योगवाही अनुष्णाशीतस्पर्श विशेष का उपलम्भ होजाने से वायु द्रव्य को सिद्ध कर दिया जाता है, क्योंकि अपने आश्रय हो रहे नियत द्रव्य के विना उन स्पर्श आदि विशेषों का उपलम्भ होना नहीं बन पाता है, यों वैशेषिकों के कथन करने पर, तब तो हम स्याद्वादी कहते हैं कि पृथिवी, जल, आदि में कथमपि उपादेय होकर नहीं सम्भव रहे शब्द का विशदरूप से उपलम्भ होरहा है, अतः उस शब्द के उपादानरूप से प्राश्रय हो रहे भाषावगरणा स्वरूप पुद्गल द्रव्यकी प्रमाणोंसे सिद्धि होजाती है, अन्यथा यानी भाषा वर्गणा या शब्द योग्यवर्गरणा के विना उस शब्द की उत्पत्ति होना नहीं बन सकता. है, उपादान कारण के विना शब्द का उपजना मसम्भव है ।
न च परमाणुरूपः पुद्गलः शब्दस्याश्रयास्मदा दिवा हों द्रियत्वात् छायातपादिवत् ' स्कंधास्तु स्यादिति सूक्ष्म राब्दगुण तमभ्यः सूक्ष्मभाषाव | पुद्गले म्योस्मदादिवा
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