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________________ २४० श्लोक-वातिक द्रव्य के आश्रित होने से तथा गुण रहित होने से और क्रिया रहित होने से, शब्द भी गुण होजाओ शब्द के द्रव्यपन का एकान्त वखाने जाना ठीक नहीं है। ____ सहभावित्वाभावान गु । इति चेत्, कथं रूगदिविशेषास्नत ए। गुगा भवेयुः । मामान्यार्पणात्तेषां महभावित्वात् पुद्गनद्रव्य तद्गुणास्ते इति चेत्, शब्दसहभावित्वं समवा यिकारणमस्तु भवत एव पृथिवीद्रव्याभावे मन्ययाकाशे गवल्यानु-पत्तेः पृथिवी द्रव्यमेव तत्स मवायिकारणमाकाशं तु निमित्तमिति चेत् तर्हि वायुद्रव्यस्थाभावे शब्दस्यानु-पत्तेः तदेव तस्य समवायिकारणमस्तु गगनं तु निमित्तमात्रं तस्य सर्वोत् । त्तमतामुत्पत्ती निमित्त कारणबोपगमात् । पवनद्रव्याभावे पे भेदंडसंयोग च्छब्दस्योत्पत्तन पवनद्रव्यं तत्समवायि पृथिव्यप्तेजोद्रव्यवदिति चेत् तर्हि शब्द परिणामयोग्यं पुद्गलद्रव्यं शब्दस्योपादानकारणमस्तु वायवादेरनियततया तत्सहकारित्वमिद्धेः । । यदि अपर विद्वान् यो कहैं कि "सहभाविनो गुणाः" अनादि से अनन्त काल तक द्रव्य के साथ विद्यमान रहने वाले गुण होते हैं, सहभावी नहीं होने से शब्द गुण नहीं होसकता है, यों कहने पर तो हम जैन कहेंगे कि तिस ही कारण से यानी सहभावी नहीं होने से रूप, रस, आदि गुणों के काले, खट्ट, आदि विशेष विवत भला किस प्रकार गुण होसकेंगे? बतायो यदि आप यों कहो कि रूप, रस, आदि के विवों में अन्वित हो रहे सामान्य को विवक्षा करने से उन काले प्रादि विशेषों का पुद्गल द्रव्य के साथ सहभावीपना है, अतः वे उस पुद्गल के गुन कह दिये जाते हैं तब तो हम जैन कहते हैं, कि यों पुद्गल द्रव्य के साथ शब्द का भा सामान्य रूप से सहभावीपना है अतः शब्द का समवायीकारण भी पुद्गल द्रव्य हो जाओ। केवल आर वैशेषिकों के यहाँ ही गन्ध का समवायी कारण पृथिवी और स्नेह का समवाया कारण जल तथा भास्वर रूप का समवायो कारण तेजा द्रव्य आदि मान रखे हैं, सामान्य की अर्पणा से सहभावी होने के कारण प्राकाश के भो गन्ध प्रादि गुण होजाओ। सत्य बात तो यह है कि शब्द हो चाहे गन्ध, स्नेह रूप अनुष्णाशीत, आदि होवे इन सव का समवायी कारण पुद्गल द्रव्य ही प्रतीति सिद्ध है। - ___ यदि तुम यों कहो कि पृथिवी द्रव्य के नहीं होने पर और आकाश द्रव्य के होते सन्ते भी मन्ध की उत्पत्ति नहीं होपाती है। अतः पृथिवी द्रव्य ही उस गन्ध का समवायी कारण होसकेगा माकाश द्रव्य तो केवल निमित्त कारण है, जैसे कि काल द्रव्य सब कार्यों का निमित्त माना गया है "जन्यानां जनकः कालो जगतामाश्रयो मतः,, यों कहो तब तो हम जन प्रापादन करते हैं, कि वायु द्रव्य के नहीं होने पर कहीं भी शब्द नहीं उपज पाता है अतः वह वायु द्रव्य ही उस शब्द का समवा. यीकारण होजानो, अाकाश तो केवल निमित्तकारण मान लिया जाय क्योंकि सम्पूर्ण उपजने वाले कार्यों की उत्पत्ति में उस आकाश का मिमित्त कारण होजाना स्वीकार किया गया है। यदि तुम यह कटाक्ष करो कि बड़े नगाड़े के साथ वेग युक्त दण्डका संयोग होजाने से शब्द की
SR No.090500
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 6
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1969
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size23 MB
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