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लोक- वार्तिक
है। हाँ वास्ताविक मुख्य कालको भी गौण रूप से परापर श्रादि बुद्धियों का कारण प्राचार्य परिपाटी अनुसार स्मरण किया गया है। अर्थात् जहाँ व्यवहारकाल प्रधान कारण है, वहां भी गौण रूप से मुख्य का कारण होरहा है, वैशेषिकों ने भी "अपरस्मिन्नपरं युगपत् चिरं क्षिप्रमिति काल-लिङ्गानि,, ||६|| इस करणाद सूत्र द्वारा काल की ज्ञप्ति करायी है ।
क्रियैव काल इत्येतदनेनैवापसारितं । वर्तनानुमितः कालः सिद्धो हि परमार्थतः ॥ ५६ ॥
धर्मादिवर्गवत्कार्यविशेषव्यवसायतः । वाधकाभावतश्चापि सर्वथा तत्र तत्त्वतः ॥५७॥
कोई पण्डित कह रहे हैं कि काल केवल क्रिया स्वरूप ही है परमाणु एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर मन्दगति अनुसार चलती है वह क्रिया समय कही जाती है, प्रातः कालसे सायंकाल तक सूर्यका भ्रमण तो दिवस माना जाता है, गोदोहन क्रिया तो गोदोहन वेलासे प्रसिद्ध ही है । ग्रन्थकार कहते हैं कि इस प्रकार किमी का कथन तो इस उक्त कथन करके ही दूर फेंक दिया गया है जब कि वर्तना करके अनुमान किये जा चुके मुख्य रूप से काल द्रव्य को सिद्ध कर दिया है जैसे कि गति, स्थिति, आदि कार्य-विशेषों का निर्णय होजाने से तथा सभी प्रकारों करके वास्तविक रूप से उन धर्मादिकों में ( के ) वाधक प्रमाणों का अभाव हो जाने से भी धर्म आदि द्रव्यों के समूह को सिद्ध कर दिया गया है । अर्थात्-धर्म आदि करके हुये गति आदि कार्यों के समान काल द्रव्य करके भी वर्तना नामक काय हो रहा है और "असम्भवद्वाधकत्वात् सत्वसिद्धि:,, काल द्रव्य का कोई वाधक भी नहीं है ।
सांप्रतं सर्वेषां धर्मादीनामनुमेयार्थानामानुमानिकी प्रतिपत्तिः सूत्रसामर्थ्यादुपजाता प्रत्यचार्थप्रतीतिवन्न वाध्यत इत्युपसंहरन्नाह ।
जिस प्रकार प्रत्यक्ष प्रमाण से जाने हुये घट श्रादि अर्थों की प्रतीति का वाधक कोई नहीं है उसी प्रकार " गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकार:" इस सूत्र से प्रारम्भकर "वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य" यहां तक के सूत्रों की सामर्थ्य से अनुमान करने योग्य धर्म, अधर्म आदि सम्पू
पदार्थों की अनुमान प्रमाण से होने वाली प्रतिपत्ति उपज चुकी भी किसी प्रमाण से वाधी नहीं जाती है । इस अवसर पर इसी बात के प्रकरणको संकोचते हुये ग्रन्थकार अग्रिम वार्त्तिकको कहते हैं ।
एवं सर्वानुमेयार्थप्रतिपत्तिर्न वाध्यते ।
सूत्रसामर्थ्यतो जाता प्रत्यक्षार्थप्रतीतिवत् । ॥५८॥
यद्यपि धर्म, प्रधर्मं, आकाश और कालायें अत्यन्त परोक्ष हैं, हां कितने ही पुद्गलोंका प्रत्यक्ष होता है फिर भी पुद्गल का बहुभाग प्रस्मदादिकों को परोक्ष है, स्वयं अपने जीवका प्रत्यक्ष भले ही होजाय किन्तु सामान्य जीवों का सम्पूर्ण जीवों का प्रत्यक्ष होजाना अलीक है, हां बोलना, चेष्टा, आदि से कतिपय जीवों का अनुमान किया जा सकता है। यह प्रच्छी बात है कि भतज्ञानसे सम्पूर्ण द्रव्यों की